मुक्तक
हार-जीत के द्वंद में, लड़ते रहे अनेक।
किसे मिली जयमाल यह, सबने खोया नेक।
बर्छी भाला फेंक दो, विषधर हुई उड़ान-
महँगे खर्च सता रहे, छोड़ो युद्ध विवेक।।-1
हार-जीत किसको फली, ऊसर हुई जमीन।
युग बीता विश्वास का, साथी हुआ मशीन।
बटन सटन है साथ में, लगा न देना हाथ-
यंत्र- यंत्र में तार है, जुड़ मत जान नगीन।।-2
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी