लघुकथा – नैसर्गिक आनंद
रात 1 बजे वापिस आए हुए सोनू और मोनू सांता क्लाज़ की वेशभूषा में ही सो गए थे. सुबह उठे तो उनके सिरहाने उनके मनपसंद उपहार रखे हुए थे, जिन पर लिखा हुआ था- ”सांता क्लाज़ की तरफ से”. वे जानते थे कि भले ही उन पर लिखा हो- ”सांता क्लाज़ की तरफ से”, पर ये उनके माता-पिता-बड़ी बहिन के द्वारा ही रखे गए थे. कल तक तो वे भी सांता क्लाज़ बने उपहार बांट रहे थे. उपहार देखते-देखते उन्हें रात 1 बजे का दृश्य याद आ रहा था.
बड़े सांता क्लाज़ उनको घर तक छोड़ने आए थे, उनके जाते ही किसी ने पुकारा-
”सांता क्लाज़ जी, मेरी क्रिसमस.”
”मेरी क्रिसमस,” पीछे मुड़कर उन्होंने एक बड़े-से अनजान अंकल को हाथ में कैमरा थामे देखा, ”अंकल जी, हमने आपको पहचाना नहीं.”
”पहचानते तो हम भी नहीं हैं आपको, पर आप सांता क्लाज़ के गेट अप में हैं और मैं व्यवसाय से पत्रकार हूं. मैं आप लोगों से कुछ पूछना चाहता हूं.”
”पूछिए अंकल जी.” मोनू ने कहा.
”इस समय आप कहां से आ रहे हैं?”
”अंकल जी, हम जरूरतमंदों को उपहार बांटकर आ रहे हैं, ताकि उनका क्रिसमस त्योहार भी खुशियों से सराबोर हो सके.”
”यह आइडिया आपको कैसे आया?”
”अंकल जी, तीन साल से हमारे पापा की पोस्टिंग ऑस्ट्रेलिया में थी. वहां हम एक चर्च में सप्ताह में दो बार शाम को पेंटिंग की ट्रेनिंग ले रहे थे. वहां के ट्रेनर हमें समय-समय पर इस तरह के काम करने की भी ट्रेनिंग दिया करते थे. नियत दिन पर अच्छी हैसियत वाले लोग जरूरतमंदों के लिए बहुत कुछ दे जाते थे, हम भी अपने घरों से ले कुछ-कुछ ले जाते थे और जरूरतमंदों में बांट दिया करते थे.”
और भी बहुत-सी बातें करने के बाद पत्रकार अंकल ने भी उन दोनों को उपहार देने चाहे. सांता क्लाज़ बने सोनू-मोनू कैसे लेते, उन्होंने कहा- ”अंकल जी, हमें तो जरूरतमंदों की खुशी देखकर ही नैसर्गिक आनंद आ गया. ये उपहार तो आने-जाने हैं.”
”मुझे भी सांता क्लाज़ समझ लो और ये उपहार ग्रहण करके मुझे भी नैसर्गिक आनंद का अहसास होने दो.
नैसर्गिक आनंद से सराबोर प्रकृति से सबका तन-मन विभोर हो गया था.
बहुत सुन्दर लघु कथा लीला बहन .
आदरणीय दीदी, हमने भी कथा का बहुत आनंद लिया । धन्यवाद , बधाई ।
निःस्वार्थ प्यार से ही नैसर्गिक आनंद मिलता है. जरूरतमंदों को उपहार देने में मिलने वाले सुख की अनुभूति का आनंद ही कुछ अलग होता है.