लघुकथा

प्यार की खिड़की – लघुकथा

पांच साल से मैं उन्हें देख रही थी. शांति और सौम्यता की मूरत-सी वृंदा दीदी की स्वाभाविक ऊर्जा देखते ही बनती थी. कई बार मैं उनसे पूछना चाहती थी- ”दीदी, 85 साल की उम्र में भी आप इतना सब अकेले कैसे कर लेती हैं?” लेकिन इस बारे में बात करना उचित नहीं समझा. इतने बड़े घर में अकेले रहना, घुटनों के दर्द को संभालना और रोज़ सवेरे ठीक 11 बजे सत्संग में पहुंच जाना. कभी-कभी उनसे बहुत छोटी उम्र की उपदेशक उनसे पूछ लेतीं- ”और वृंदा आंटी, आप क्या बता रही हैं?”
”बस, अपने को पहचान लो, खुद से मुलाकात कर लो, इतना ही काफी है.” वृंदा दीदी कोमलता से कहतीं और उपदेशक उस पर एक अच्छा-सा दृष्टांत बताकर उनकी बात को पूरा करतीं.
एक दिन सत्संग से वापिस आते समय मेरी जिज्ञासा अपने आप शांत हो गई, जब वे कार में मेरे साथ ही बैठी थीं और मुझसे बोलीं- ”सत्संग में आने का मन होते हुए भी इतनी दूर अकेले आना बहुत मुश्किल था. इतने में पुष्पा का फोन आ गया- ”आंटी, गाड़ी में जगह है, आप को चलना है? मैंने हामी भर दी. क्या करूं? चारों ओर अंधेरा है, बस एक प्यार की खिड़की खुली हुई है, उसी के उजास से काम अच्छे-से चल रहा है. काम वाली बाई टाइम से काम कर जाती है, प्रेस वाला टाइम से कपड़े प्रेस करके दे जाता है, ई.रिक्शा वाला टाइम से सत्संग के लिए ले जाता है और छोड़ जाता है, कहीं दूर सत्संग होता है, तो किसी-न-किसी सत्संगी का फोन आ जाता है, और इन घुटनों को प्यार से सहलाकर मनाती हूं. प्यार की इसी खिड़की की उजास से मुझे अनवरत ऊर्जा मिलती रहती है. शुकराने हैं प्यार की इस खिड़की के.”
तभी वृंदा दीदी का घर आ गया था, वे उतर गईं, लेकिन उनकी प्यार की खिड़की खुली ही रही, उसी से मुझे भी थोड़ी-बहुत ऊर्जा मिल रही है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

7 thoughts on “प्यार की खिड़की – लघुकथा

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , लघु कथा पियार की खिड़की बहुत अछि लगी . दरअसल कुछ लोग ही होते हैं जो इस रम्ज़ को समझ सकते हैं .जो समझते हैं वोह अपनी जिंदगी को चलाये रखते हैं . अब हम हैं, पता है की कोई इलाज नहीं, कष्ट हैं लेकिन किया करें, रजाई में छुप कर बैठ जाएँ ? बस, मन में पियार की खिड़की खुली रहे, बुढापा आसान हो जाता है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. मन में प्यार की खिड़की खुली रहे, तो बुढ़ापा आसान हो जाता है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • रविन्दर सूदन

    आदरणीय दीदी, प्यार की खिड़की से मिलती ऊर्जा का महत्त्व समझ में आ गया । सुन्दर
    लघुकथा ।

    • लीला तिवानी

      प्रिय रविंदर भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको प्यार की खिड़की से मिलती ऊर्जा का महत्त्व समझ में आ गया. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • सरला तिवारी

    बहुत सुंदर सन्देश देती लघुकथा👌🙏

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी सरला जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको यह लघुकथा बहुत सुंदर सन्देश देती हुई लगी. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    प्यार की इसी खिड़की से वृंदा दीदी को ऊर्जा मिल रही है, उसी के प्रकाश से काम वाली बाई टाइम से काम कर जाती है, प्रेस वाला टाइम से कपड़े प्रेस करके दे जाता है, ई.रिक्शा वाला टाइम से सत्संग के लिए ले जाता है और छोड़ जाता है, कहीं दूर सत्संग होता है, तो किसी-न-किसी सत्संगी का कार से ले जाने के लिए फोन आ जाता है, यही प्रकाश घुटनों के दर्द को सहला भी देता है. प्यार की खिड़की खुली रखिए, जिंदगी का मधुरिम मजा चखिए.

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