दिलखुश जुगलबंदी-2
छू लो आसमान
छू लो आसमान जमीन की तलाश न करो,
जी लो ज़िंदगी ख़ुशी की तलाश न करो,
तकदीर बदल जाएगी अपने आप ही दोस्तो,
मुस्कुराना सीख लो, वजह की तलाश न करो,
पुराने साल से सीख लो, नए साल का स्वागत करो.
उड़ने वाले परिंदों की ज़मीं आकाश है
चलने वाले इन्सां की ज़मीं
उसके क़दमों के नीचे है
परिंदे उड़ते रहते हैं
इन्सां चलता रहता है
रुक जाने से
दोनों की तक़दीर
रूठ जाती है
उड़ते रहो
चलते रहो
तो ज़िन्दगी में
मुस्कराहट
छा जाती है
पुराना साल
चल कर गया
नया साल
फुदकता आया
आओ इसका
करें स्वागत
जीवन में सबके
फैलाएं
मुस्कराहट .
परिंदे उड़ते हैं आकाश में
पर जमीं को भूलते नहीं हैं
उनकी गर्दन ऊंची मगर
नजर नीचे की ओर होती है
जानते हैं वह असलियत
कि वापिस हमें जमीं पर ही आना है
गर्दन ऊंची करके भी विनम्रता का गुर
परिंदों ने ही जाना है.
नज़र नीचे कर परिंदे
बंधुओं को पुकारते हैं
आओ संग मिल उड़ें
मिल कर उड़ने में
जीवन का आनंद है
आप हंसो तो
जग मुस्कराए
चहचहा कर
सन्देश यही
वे देते हैं.
नज़र नीचे कर परिंदे
बंधुओं को पुकारते हैं
बंधु भी प्रेम से आते हैं
सब मिलकर अपनी गाथा सुनाते हैं
गुनगुनाते हैं
चहचहाते हैं
आनंद की सरिता बहाते हैं
उसमें जी भरकर नहाते हैं
हमें भी भी विश्व बंधुत्व का
हितकारी पाठ पढ़ाते हैं
प्रेम से सभीजन मिलकर
छू लो आसमान
की नेक सीख सिखाते हैं.
फेसबुक पर सुदर्शन खन्ना और लीला तिवानी की काव्यमय जुगलबंदी
परिंदों की सीख
उड़ान बड़ी चीज होती है,
रोज उड़ो पर शाम को रोज नीचे आ जाओ,
क्योंकि आप की कामयाबी पर ताली बजाने वाले
और गले लगाने वाले सब नीचे ही रहते हैं.
बहुत मजेदार जुगलबन्दी आप की और सुधर्शन भाई की, लीला बहन .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको हमारी और सुदर्शन भाई की जुगलबन्दी बहुत मजेदार लगी. आपने देखा होगा, इसमें दिल खुश करने के अलावा बहुत-से संदेश भी छिपे हुए हैं.