ठक-ठक, ठक-ठक-2
ठक-ठक, ठक-ठक-1
”ठक-ठक, ठक-ठक”.
”कौन है?”
”मैं हूं नया साल 2019.”
”लो, आज 5 तारीख हो गई, तुम अब भी अपने को नया कह रहे हो?”
”तुम भी तो कहते हो- ”नई दुल्हिन नौ दिन” और सिंधी भाषा में कहते हैं-
”नईं कुंवारि नंवं डीहं, लथेपथे डह डीहं.” तो मुझे खुद को 9-10 दिन तक तो नया कहने दो. वैसे तो मैं 365 दिनों तक नया ही रहूंगा, जब तक 2020 आकर मुझे धकेल नहीं देगा.”
”चलो अब तुम आए हो तो तुम्हारा एहतराम है.”
”मेरा एहतराम करने के लिए आपका हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.”
”आपका कोई संदेश?”
”भाई, मेरा संदेश है-
अक्सर लोग देशी और विदेशी साल के विवाद में,
खुशी मनाने का एक अतिरिक्त अवसर गंवाते हैं,
खुद तो विवाद में फंसते ही हैं, अन्यों को भी फंसाते हैं.
आप लोग साल में दो बार नया साल मना लो- देशी भी और विदेशी भी. हां, नए साल का संदेश भेजने में बहुत ध्यान रखना.”
”आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? हम तो हर काम ध्यान से करने की कोशिश करते हैं.”
”भाई, मैंने एक संदेश देखा था.उसको एक संदेश लिखना था-
”नया साल मुबारक हो.”
लिखा गया-
”नया साला मुबारक हो.”
अब वहां कोहराम मचा हुआ है.”
”सही कह रहे हो, कोहराम तो मचना ही था.”
ठक-ठक, ठक-ठक-2
”ठक-ठक, ठक-ठक”.
”कौन है?”
”मैं हूं एक खुशखबरी.”
”खुशखबरी! तो जल्दी बोलो, क्या खुशखबरी है?”
”हां भाई, खुशखबरी के लिए तो सभी लोग पलक-पांवड़े बिछाए रहते हैं. सुन लो-
31 मार्च से ट्रेनों में यात्रियों को खानपान का सामान खरीदते वक्त ओवरचार्जिंग से मुक्ति मिलेगी. रेलमंत्री पीयूष गोयल ने निर्देश दिए हैं कि 31 मार्च तक सभी ट्रेनों में पीओएस मशीनें उपलब्ध कराई जाएं, ताकि यात्री जब कोई खानपान का सामान खरीदें तो उसी मशीन से ही उन्हें बिल मिले.”
”अरे वाह, यह तो बहुत अच्छी खुशखबरी है!”
”इस खुशखबरी के साथ दो बातें ध्यान में रखना.”
”फिर ध्यान की बातें?”
”हां भाई, ध्यान रखना बहुत जरूरी है.
1.ये मत कहना कि हम विदेश में आ गए हैं, विदेशियों को कहने देना हम अपने देश देश में आ गए हैं.
2.खाने-पीने की चीजों के रैपर्स और बोतलों को डस्टबिन में डालना, इधर-उधर मत फेंकना.”
”यह तो बहुत अच्छी बात है.”
”बिलकुल सही कहा- वैसे भी भारतीय संस्कृति में कहा गया है-
अहिंसा परमोधर्मः.
अब तुम कहना शुरु करो-
स्वच्छता परमोधर्मः.
ठक-ठक, ठक-ठक-3
”ठक-ठक, ठक-ठक”.
”कौन है?”
”मैं हूं फैशनेबल जमाने की एक अनोखी मिसाल.”
”तुम हमें क्या सिखाओगी?”
”ध्यान.”
”आज तुम भी ध्यान सिखाने वाली हो?”
”जी ध्यान तो बहुत जरूरी है.”
”लेकिन खबर तो बताओ.”
”तो सुनो-
पत्नी ने पहनी ऐसी ड्रेस, पति ने सांप समझकर तोड़ दिया पैर.”
”ये कब-कहां-कैसे-क्यों हुआ?”
”यह हुई न ध्यान की बात. सुनो-
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में एक महिला ने पैरों पर सांप जैसी दिखने वाली ‘स्टॉकिंग्स’ पहनी थी. उसके पति ने उसे असली सांप समझकर एक बेसबॉल बैट से उसे मारने के लिए जोरदार वार कर दिया. जब सच्चाई का पता चला, तब पत्नी को काफी बुरी तरह घायल हो चुकी थी. अब उसकी टांग प्लास्टर में कैद है.”
”यह तो सचमुच ध्यान वाली बात है. एक तो ड्रेस पहननी चाहिए, दूसरा कुछ भी करने से पहले सच्चाई का पता लगाना चाहिए.”
ठक-ठक, ठक-ठक-4
”ठक-ठक, ठक-ठक”.
”कौन है?”
”मैं हूं ‘ठांय-ठांय’ निकालकर डराने सब-इन्स्पेक्टर वाला मनोज कुमार.”
”अरे, अब क्या हुआ? फिर ‘ठांय-ठांय’ करने लगे क्या?”
” रोज ठांय-ठांय’ नहीं चलती है, इस बार मेरे हाथ में गोली लग गई है, मैं घायल हो गया हूं”
”ओहो! फिर तो आपको बहुत दर्द हो रहा होगा!”
”सहानुभूति के लिए शुक्रिया, फिर भी मुझे संतुष्टि है, कि मेरी टीम ने उस बदमाश को घायल करके पकड़ लिया है. शुक्रवार को गोलीबारी के बाद अलियानेकपुर से खूंखार अपराधी सद्दाम को गिरफ्तार किया। सद्दाम लूट, चोरी और हत्या के प्रयास जैसे 15 मामलों में वॉन्टेड था. उसका एक साथी अकरम भागने में कामयाब हो गया.”
”चलिए, अपना ध्यान रखिएगा.”
”जी हां, बिलकुल ठीक कहा. मुझे पहले भी ध्यान रखना चाहिए था.”
ठक-ठक, ठक-ठक-5
”ठक-ठक, ठक-ठक”.
”कौन है?”
”मैं हूं मुंबई पुलिस का बजरंगी भाईजान.”
”तुमने क्या किया भाईजान?”
”8 दिन बाद ही सही, मैंने बच्ची को खोजकर उसके घर पहुंचाया.”
”पूरा किस्सा सुनाओ ना!”
”मैंने ऑपरेशन ‘मुस्कान’ के प्रशिक्षण के दौरान सीखी हुई बातों को ध्यान में रखा और 16 दिसंबर की शाम सवा छह बजे केस आने के बाद जी-जान से बच्ची की तलाश में जुट गया. सही से बोल भी नहीं पाने वाली बच्ची को ढूंढ़ना न सिर्फ चुनौती भरा कार्य होता है, बल्कि जोखिम भी काफी रहता है. उसे एक महिला ने किडनिअप किया था और उसे लेकर आंध्र प्रदेश पहुंच चुकी थी. बस थोड़ा-सा ध्यान इधर-उधर होता, तो बच्ची का मिलना मुश्किल था.”
”अमित भाई, आपका हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.”
हौसलों ने बनाई एक अलग पहचान, जानिए कैसे?
बीत रहे इस साल ने यह साबित कर दिखाया कि कोई मुकाम हासिल करने के लिए न उम्र की परिपक्वता जरूरी है, न ही कोई खास क्षेत्र। बस हौसला होना चाहिए.
जिस उम्र में बच्चे कार्टून देखने में बिजी रहते हैं, अर्शदीप ने दुनिया का मशहूर अवॉर्ड हासिल कर लिया है।
जिस वक्त बच्चे स्कूल के असाइनमेंट और एग्जाम्स की तैयारी में उलझे होते हैं, 16 साल के समय गोदिका ने ‘ब्रेकथ्रू जूनियर चैलेंज’ जीतकर इतिहास रच दिया। इस चैलेंज को जीतने पर समय को 4 लाख डॉलर यानी करीब 2.90 करोड़ रुपये का इनाम मिला।
दुनिया की सैर करने का ख्वाब तो बहुत से लोग पालते हैं और सैर करते भी हैं, लेकिन अगर कोई खुद एयरक्राफ्ट उड़ाकर इस सैर को पूरा करने की ठाने तो उसके हौसले को सलाम करना बनता है। इसी सलाम की हकदार हैं 22 साल की आरोही पंडित और 24 साल की किथियर मिस्क्विटा। दोनों ने मही पर सवार होकर 100 दिनों में दुनिया घूमने की योजना बनाई और उसे पूरा करने निकल पड़ीं।