मुकरियाँ
प्रीत बढ़ाए प्यास जगाए
ख्वाब दिखाए मन महकाए
हरा भरा धरती का आँगन
का सखि साजन ना सखि सावन |
तपती धरती व्याकुल जन मन
ऐ • सी कूलर में भी तड़पन
आने से जिसके मन हर्षा
का सखि साजन ना सखि वर्षा |
तन्हाई में बीते रतियाँ
गुपचुप करता रहता बतियाँ
जलता है जैसे परवाना
का सखि साजन ना दीवाना |
सौ सौ वादे नित्य ही करता
करके वादा सदा मुकरता
बड़े बड़े सपने दिखलाता
का सखि साजन ना सखि नेता |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुुुल’
लखनऊ(उत्तर प्रदेश )