परिवर्तन
उपदेशों से भरा कटोरा वे छलकाते।
जोर जोर से शोर मचाकर लुत्फ उठाते।
ना खुद ही वे चखे और ना लेने वाले-
जो बातों में फँसा उसे सब स्वाद चखाते।।
काश स्वयं भी चखने का साहस वे करते।
उस नपने पर एक बार भी खुद को रखते।
निश्चय वह उपदेश बहुत फलदाई होता-
गर सच्चे दिल से आगे खुद भी वे चलते।।
किन्तु नहीं उनकी मंशा परिवर्तन की है।
छद्म वेश में सही – गलग के घर्षण की है।
दोष किसी के सिर मढ़ने की है तलाश बस-
अति सक्रिय होकर पल भर बस नर्तन की है।।
परिवर्तन के हेतु स्वांग नहिं,सीख जरूरी।
सहभागी उद्यम से मिटती दिल की दूरी।
दिल सच्चा हो और सत्य हो अगर इरादा-
परिवर्तन की हर आशा हो जाती पूरी।।
डॉ. अवधेश कुमार ‘अवध’