लघुकथा

लघुकथा – परीक्षा

“माँ! माँ आज मैं बेहद खुश हूँ… आप पूछेंगी ही क्या कारण है… पहले ही बता दूँ कि हमारी सारी चिंताएं-परेशानियाँ खत्म होने वाली है… मैं जिस कम्पनी में काम करती हूँ उसी कम्पनी में साकेत की नौकरी पक्की हो गई… अगले महीने से जॉइन कर लेंगे… पाँच साल से मची अफरा-तफरी खत्म होगी और वे हीन भावना से बाहर आ जायेंगे…।” खुशी से उफनती मोहनी की आवाज फोन के स्पीकर से निकलकर ससुर मोहन के कानों में चुभ रही थी..
वे उफन पड़े,”मैं पहले भी मना कर चुका हूँ कि पति-पत्नी का एक ही ऑफिस या कम्पनी में काम करना उचित नहीं है… दोनों के आपसी रिश्ते पर असर पड़ेगा…।”
“जानती हूँ! आपको कभी पसंद नहीं था कि साकेत और मोहनी एक कम्पनी में काम करे.. जब साकेत एक बड़ी कम्पनी में काम करता था और उस कम्पनी ने मोहनी को रखना चाहा था तो आपने विरोध किया था… समय का पहिया बहुत तेज़ी से बदला… साकेत को विदेश का प्रलोभन मिला, अपनी कम्पनी खोलने का चक्कर… विदेश में अडिग होना , असफलता चखना, अवसाद में घिरना… वो तो शुक्रिया ईश का, मोहनी ड्योढ़ी के खूंटे से बंधी नहीं रही थी… कश्ती भंवर से निकाल रही है… इस बार आप बिलकुल विरोध नहीं करेंगे…।” मोहनी के सास की बातों पर मोहर लगना ही था।

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ