कहानी – महत्वाकांक्षा
सुनील बचपन में कक्षा में बहुत होशियार तो नहीं , पर एवरेज से ऊपर था , लेकिन देखकर सभी उसे होशियार ही समझ लिया करते थे । देखने में भी तो वह होशियार ही लगता था । होशियार दिखने के कारण ही तो उससे निम्न श्रेणी के या कक्षा में जिन चार – छ: विद्यार्थियों को अध्ययन का कुछ भी कम समझ में आता था , या कुछ समझ में नहीं आता था , वे उसके आगे – पीछे रहते थे , उसकी ख़ुशामद किया करते , उससे पढ़ाई का सब कुछ समझने का प्रयत्न करते थे । इन हालातों में , उसके मस्तिष्क में यह बात घर करने लगी थी कि वह बहुत होशियार है । इस तरह पढ़ाई में वह सभी कमज़ोर छात्रों का लीडर बन गया । उसकी तरह – तरह की महत्वाकांक्षाएँ सिर उठाने लगीं , जिन्हें वह कम करना नहीं जानता था या वह उन पर अंकुश लगाना नहीं जानता था । कभी वह सोचता कि वह पढ़ – लिख कर बड़ा साहब बनेगा , कभी सोचता कि वह कलेक्टर बनेगा ही । कभी उसके सपने अशोका द ग्रेट , कभी हिटलर , कभी सिकंदर बनकर विजयी बनने के होते , और कभी वह एक बड़ा इंजीनियर बनने के सपने देखता । इन सब सोच – विचारों के चलते वह पढ़ाई के लक्ष्य से कभी डिगा नहीं , और न ही वह हर पल शेखी बघारने के कगार पर पहुँच सका था , इसलिए कमज़ोर वर्ग के विद्यार्थी उसके आगे – पीछे चक्कर काटते । उसे कुछ न कुछ खाने की वस्तुएँ भी ला कर देते थे । ऐसा लगने लगा था , मानो इन सबका एक दल है , जिनमें एकता , समता , सद्भाव व भाईचारे की भावना कूट – कूट कर भरी है , और वे कभी अलग नहीं हो सकते है , और न ही क़ोई उन्हें अलग कर सकता है । धीरे – धीरे उनकी यह एकता सबको भाने लगी थी । सुनील को आभास होता कि वह उनका डाॅन ही बन गया है , पर वह उन पर किसी तरह का कोई हुक्म नहीं चलाता था और न ही किसी तरह का कोई हुक्म चलाना चाहता था । प्राइमरी शाला में पढ़ते समय वह उसके लिए खरीदे गये खिलौनों व कारों की या गिफ़्ट में मिली चीज़ों की तोड़ – फोड़ करता , और देखता कि कैसे बनाई गई हैं ये चीज़ें , क्या मैं भी बना सकता हूँ ऐसी कारें , और फिर उन्हें जोड़ने का प्रयत्न करता , पर अज्ञानतावश वह उन्हें यूँ ही टूटी – फूटी हालत में छोड़ देता ।
सेकेण्डरी स्कूल में उसकी कक्षा को पढ़ाने के लिए बहुत अच्छे अध्यापक मिले , जो अपने विद्यार्थियों के गुणों को पहचान कर उनका बड़ी कुशलता से मार्गदर्शन करते , पर उन्हें यह भी ज्ञात था कि शिक्षा व नसीहत चाहे कितनी भी दे दो , जिनको जो बनना है , वो तो बनेंगे ही , जबकि वास्तव में अधिकांश विद्यार्थी उन पर अमल करने की बात कहते । उन्हें जैसे विश्वास था कि वे अवश्य ही अपनी सँजोई महत्वाकांक्षा पूरी करेगे । अध्यापक ने कक्षा में छात्रों की महत्वाकांक्षाएँ पूछीं , तो उन्होंने बड़े सपनों वाली अपनी ऊँची – ऊँची महत्वाकांक्षाएँ बताईं , पर सुनील बोला कि वह सबका राजा , सबका डाॅन बनना चाहता है । वह दूसरों पर एकछत्र राज करना चाहता है , सब पर छा जाना चाहता है । ‘ अपुन का तो येईच सपना है , यईच महत्वाकांक्षा । ‘ अंतिम वाक्य सुनकर अध्यापक सहित सभी भौचक रह गये । अध्यापक बोले कि ऐसा नहीं सोचते । तुम अच्छे स्कूल में पढ़ते हो , देखने में भी बडे होशियार लगते हो , अच्छे – ऊँचे सपने देख़ो , अच्छे काम करने के बारे में सोचो , बेटे । तुम्हें देखकर तो कोई नहीं कहेगा कि यह तुम्हारी महत्वाकांक्षा है , और वह भी ऐसी महत्वाकांक्षा , बच्चे ! परीक्षाएँ समाप्त हुईं । छात्र स्कूल छोड़ गये । बीच – बीच में कभी – कभी कोई न कोई विद्यार्थी मिलने आ जाता था । समय बीतने के साथ सभी विद्यार्थियों ने अलग – अलग स्थानों पर अलग – अलग काॅलेज की राह पकड़ ली ।
समय के कुछ अंतराल पश्चात् एक बार अचानक सुनील का उसी अध्यापक से आमना – सामना हो गया । सुनील ने उनके चरण स्पर्श किए , हाल – चाल पूछा , तो अध्यापक उसका हुलिया देखते ही उसके बारे में सब जान गये , समझ गये । सुनील ने पूछा कि सर , है कोई ऐसी – वैसी दिक्कत या परेशानी ? बताइएगा , सर , सब ठीक कर दूँगा । किसी बात की चिंता मत करना , सर , मैं हूँ , चौबीसों घंटों आपकी सेवा में हाज़िर रहने के लिए तत्पर रहूँगा , सर । आज़मा कर तो देखिए । कोई काम हो तो बताइएगा , सर । सर की परेशानी देखकर वह बोला कि अब म इस राह में बहुत अंदर तक चला गया हूँ , वापस आ नहीं सकता , सर । इसी तरह मेरी महत्वाकांक्षा पूर्ण होने जा रही है । माँ – बाप ने भी बहुत समझाया , कमाने का यही आसान माध्यम दृष्टिगोचर हुआ उसे । अब तो डाॅन बनने ही वाला हूँ । मेरी महत्वाकांक्षा तो अब पूरी होगी । अपने पास – पड़ोस के कारण व परिस्थितियों के बश होकर भी मैं इस डगर चल पड़ा । ऐसे नहीं तो वैसे , मेरी महत्वाकांक्षा पूरी होने वाली है , सर । जिस राह सुनील चल पड़ा था , वह कितनी कंटकाकीर्ण है , कितनी भयावह है , वह गहराई तक यह बात नहीं जान पाया था , न ही जानता था । उसने तो बस सोचा था कि यह राह सरल है , और वह आसानी से डाॅन बन कर पैसा कमा लेगा ।
आख़िर एक दिन उसी के एक दोस्त ने ख़बर दी कि सुनील डाॅन बन गया है , और अच्छा – ख़ासा कमा रहा है ।उसके पास काफी जायदाद जमा हो गयी है । वह एक तरह से अमीर आदमी बन गया है । कुछ ही दिनों पश्चात् बहुत दुख भरी आवाज़ में उसी दोस्त ने आकर बताया कि वह डाॅन तो बन गया था , पर जलन – ईर्ष्या व डाॅन बनने की महत्वाकांक्षा वाले उसी के दुश्मनों ने उसे , व उसे सही सीख देने वाले उसके परिवार को मौत के घाट उतार दिया गया था । अफ़सोस वह समय रहते सँभल जाता , सही राह पकड़ लेता ।
सुनील इस दुनिया को छोड़कर दूसरी ही दुनिया में चला गया था । अब तो सिर्फ़ मानवता बिलख रही थी , और सिर उठा कर चलने वाली महत्वाकांक्षा पैर फड़फड़ाकर ख़ून में लथपथ पड़ी मानो चीख – चीखकर चीत्कार कर रही थी , कह रही थी , कि साथियो , ऐसी महत्वाकांक्षा भी किस काम की , जिससे न अपना , न औरों का भला हो सके । मेरे अध्यापकों , माता – पिता व मेरे कितने ही हितचिंतक साथियों की बात मैंने नहीं मानी तो , आज महत्वाकांक्षा छटपटाती हुई गर्त में चली गई है । काश ! मेरी महत्वाकांक्षा कभी ऐसी न होती ।
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(C) रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘
8.5.2018 , 11: 58 पी. एम. पर लिखित।
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