फिर सदाबहार काव्यालय-11
कविता – नया साल
बेटे ने पूछा- ”मां!
बाहर सब शोर मचा रहे हैं,
नए साल को बुला रहे हैं.
क्या शोर मचाने से
नया साल आएगा?
इस शोर से डर कर
कहीं भाग तो न जाएगा?”
मां उस की बातों पर हंसी
फिर सोच में फंसी
यह क्या जाने क्या नया साल है
हमारा तो जो कल था
वही आज भी हाल है
फिर भी,
बच्चे को कुछ तो बताना था
उस के मन की उत्सुकता को बुझाना था
“नया साल आएगा“
कह कर बच्चे को सुला दिया
भविष्य के स्वर्णिम झूले पर
झुला दिया
सुबह बिस्तर से उठा बच्चा
बोला- ”मां
कहां हैं उमंगें?
कहां हैं खुशियां?
यह तो वही भोर है
जो कल थी
सब कुछ वही है जो कल था
कुछ नया नहीं सब पुराना है.”
अपने को उम्मीदों के,
घेरे में डाल कर
आज के वर्तमान को
भविष्य की डोर में बांधकर,
परिस्थितियों से करना है समझौता.
इसलिए एक निश्चित
तारीख पर
पिछले पन्ने को पलटकर
नए पन्ने पर करते हैं हस्ताक्षर
वरना, सच-सच बताना
मेरे दोस्तो-
कल की सुबह
और आज की सुबह में
कुछ अन्तर पाया?
कुछ नया नज़र आया?
नहीं
फिर भी सब करेंगे प्रयास
कुछ नया कर दिखाने को
और संजोएंगे नई खुशियां
नए अरमान
फिर मचाएंगे शोर
एक और नया साल बुलाने को
उमंगों भरा फिर एक नया साल
आएगा–
अन्दर बाहर शोर मचाने से
भाग नहीं जाएगा.
श्रीमती कैलाश भटनागर
ऑस्ट्रेलिया से 94 वर्ष की युवा कलमकार कैलाश भटनागर की ताजा कविता
ऑस्ट्रेलिया की 94 वर्ष की चिरयुवा कलमकार श्रीमती कैलाश भटनागर जी ने नए-पुराने साल की कशमकश का बहुत सुंदर मंथन किया है. इस मंथन से जो सार रूपी अमृत निकला वह है-
अपने को उम्मीदों के,
घेरे में डाल कर
आज के वर्तमान को
भविष्य की डोर में बांधकर,
परिस्थितियों से करना है समझौता.
इसलिए एक निश्चित
तारीख पर
पिछले पन्ने को पलटकर
नए पन्ने पर करते हैं हस्ताक्षर
श्रद्धेय कैलाश जी ने अंत में जो सकारात्मकता का दिग्दर्शन किया है, वह तो अनूठा ही है-
फिर भी सब करेंगे प्रयास
कुछ नया कर दिखाने को
और संजोएंगे नई खुशियां
नए अरमान
यही सकारात्मकता कविता को सदाबहार बना देती है.