बेचारे..! खदानकर्मी
पिछले दिनों कुछ समाचारों में प्रकाशित इस खबर से कि मेघालय राज्य के जयंतिया हिल्स की पहाड़ियों में एक अत्यन्त खतरनाक कोयले की अवैध खदान में पिछले 13 दिसम्बर को पानी भरने से उसमें 15 मजदूर अन्दर ही रह गये हैं ,उस स्थिति में अपने को रखकर , सोचने पर हृदय और रूह कांप उठी , कि इस देश में कमजोर ,गरीब आदमी की कहीं भी सुनवाई नहीं होती है , उसके लिए कहीं भी मानवीयता , मनुष्यता और न्यायप्रियता नहीं है , सारी की सारी व्यवस्था धनी ,अमीर और रसूखदार लोगों के लिए आरक्षित ,सुरक्षित है , तभी तो लगभग बाईस दिनों से मेघालय की एक अवैध कोयले की खदान में , जिस पर राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल के 2014 में ही प्रतिबन्धित करने के बावजूद , उसमें अवैध खनन जारी था , फंसे 15 मजदूरों को निकालने के लिए न तो वहाँ की राज्य सरकार न केन्द्र सरकार की तरफ से कोई राहत कार्य की गई है , सभी चुप बैठे हैं ।
कितनी दुखद स्थिति है कि सरकारों की इस असंवेदनशीलता और कुँभकर्णी नींद से जगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा है ,भारत की माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि एक तो इस ‘ चूहे की बिल ‘ जैसी अत्यन्त खतरनाक खान जिसके अत्यन्त संकरी सुरंगों से गरीबी के मारे मजदूरों से सरकारी मिलीभगत से कोयले का अवैध खनन कराई जा रहा था ,जिसमें सदा मौत के साये में उन बेचारे मजदूरों को काम करना पड़ता है । अब जब दुर्घटनावश उसमें पानी भर गया तो सभी सरकारी तंत्र बेपरवाह होकर , गहरी नींद में सो गये हैं ,कितनी विडम्बना है कि यही केन्द्र सरकार कुछ दिनों पूर्व थाईलैंड में एक ऐसी ही खदान दुर्घटना में ,जिसमें अत्यधिक वर्षा से बाढ़ आने की वजह से पानी भरने से बहुत से बच्चे फँस गये थे ,को निकालने के लिए बहुत ही फुर्ती से तुरन्त हाईपॉवर पंप भेजकर मदद की थी और वे सभी बच्चे सचा लिए गये थे ,अब अपने देश के गरीब मजदूरों को बचाने में इतनी असंवेदनशील क्यों हो गई है ? , उन्हें किसी तरह बचाने के लिए प्रयत्न क्यों नहीं किया जा रहा है ! वैसे भी बाइस दिन की अवधि बहुत लम्बी होती है ,उन गरीब ,बेसहारा मजदूरों के बचने की उम्मीदें बहुत ही कम हैं ,परन्तु उनको उनके हाल पर छोड़ देना कहाँ की मानवीयता है ? वैसे प्रश्न ये भी है कि बगैर स्थानीय राज्य प्रशासन के सहयोग के ये खदान चल कैसे रहा था ? अगर यह मिलीभगत से चल रहा था तो अवैध खनन माफियाओं के साथ राज्य सरकार के प्रशासनिक अधिकारी भी उन बेचारे गरीब मजदूरों की हत्या करने के प्रयास के जुर्म में दोषी हैं ,उन्हें कठोरतम् दण्ड मिलना ही चाहिए ।
-निर्मल कुमार शर्मा ,गाजियाबाद , 4-1-19