ग़ज़ल – मुश्किलों से पार पाए जा रहे हो
मुश्किलों से पार पाए जा रहे हो।
दुश्मनों का दिल जलाए जा रहे हो।।
दिल में तुम मातम तबाही का लिए,
किस तरह यूँ गुनगुनाए जा रहे हो।
भूल के खूं का जो रिश्ता जा चुके,
तुम लिए उनकी बलाएं जा रहे हो।
मन का अँधियारा ही तुमसे न मिटा,
मंदिरों में लौ जलाए जा रहे हो।
कागज़ी रिश्ते चुने तुमने तो क्यों,
बारिशों से खौफ खाए जा रहे हो।
मुझको महफ़िल से नहीं उठने दिया,
खुद ही देखो बिन बताए जा रहे हो।
इस तरह दरिया नहीं बनता कभी,
जो रेत में आँसू बहाए जा रहे हो।
काँटों की सोहबत कहाँ ऐसी हसीं कि,
फूलों से ‘लहर’ खार खाए जा रहे हो।