वृद्ध किसान
रोप रहा था फलों के पौधें
खेत में अपने बृद्ध किसान,
उधर से ही गुजर रहा था
एक हट्टा- कट्टा नौजवान।
पूछा उसने किसान से
दादा जी क्या लगा रहे हो,
बहुत उमर हो गई आपकी
क्यों पसीना बहा रहे हो।
समय लगेगा बड़ा होने में
फिर लगेगा एक दिन फल,
तब तक इस दुनिया से तो
लेकर विदाई आप दोगे चल।
खा ना पाओगे फल इसका
परिश्रम हो जाएगा बेकार,
जो है सपने मन में आपके
हो ना पाएंगे वह साकार।
परिश्रम करने का समय नहीं
कर लो आप तनिक विश्राम,
पूरा जीवन बीत गया है
कब आप करोगे आराम।
पौधे रोपना कर्म है मेरा
कर्म अपना मैं कर रहा,
किसानों के परिश्रम से ही
देश समृद्धि की ओर बढ़ रहा।
सर्दी, गर्मी और बारिश में
बहाते हैं हम खून, पसीना,
तभी संभव हो पाता है
देश में सबको अनाज मिलना।
सबको भरपेट भोजन मिलता
हम भूखे पेट सो जाते हैं,
नियति का कैसा खेल है देखो
खुशी देने वाले दुखी रह जाते हैं।
पूरा जीवन बीत गया मेरा
यह पवित्र कार्य करते करते,
जितनी उम्र अब बची है
बीत जाए वह पौधे रोपते,रोपते।
बहुत वृद्ध मैं हो गया हूं
मेरे पास नहीं है समय,
चल रही जब तक सांसे
कर लूं काम होकर तन्मय।
फलों के यह पेड़ मैंने
स्वयं के लिए नहीं लगाये,
आने वाली पीढ़ी खाएगी
क्या हुआ जो मैं फल ना खाये।
इन पौधों से देश में आएगी
हरियाली और खुशहाली,
मिलेगी सबको शुद्ध हवा
फलों से लद जाएगी डाली।
क्षमा करना मुझे दादा जी
समझी ना आपकी भावना,
दी शिक्षा नई पीढ़ी को
कर्तव्य सबका पौधे लगाना।
आपके सामने नतमस्तक हूं
पवित्र भावना को करता नमन,
सबसे मेरी है यही प्रार्थना
भावना को समझे प्रत्येक जन।
मैं भी लगाऊंगा कल से पौधे
देता हूं मैं आपको वचन,
प्रेरित करूंगा औरों को भी
मिलकर करें पौधे रोपण।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।