औरों की कही बताता है
सही को गलत गलत को सही बताता है
नहीं वो अपनी औरों की कही बताता है
दूसरों की सुनकर अपना तजुर्बा भी खोया
छाछ बन चुकी है मगर वो दही बताता है
मुहब्बत में हिसाब भला कौन रखता है
बदल गया वो देखो खाता बही बताता है
दौलत ओ शोहरत का ही ख़ुमार है चढ़ा
अब ख़ाक को भी नासमझ गही बताता है
पहले अदब से मिलकर एहतराम करते थे
वक़्त की अब बहुत कमी हो रही बताता है
बदले बदले क्यों हैं अंदाज़ लोग पूछ रहे
गलतफ़हमी है आपकी सबको यही बताता है