बाल कविता

जिज्ञासा

चीं चीं करती चिड़िया तुम
जा रहे हो किधर उड़कर,
बताके जाओ मुझे यह बात
क्षणभर मेरे पास रुक कर।

समय नहीं है अभी मेरे पास
लाना है मुझे तिनका चुनकर,
बना लूं पहले घोंसला अपना
फिर बातें करूं तुमसे मिलकर।

किधर जाते हो मधुमक्खी तुम
गुन-गुन गुन-गुन गाना गाकर,
एक बार बताके जाओ मुझको
चकित हूं मैं तुम्हारी व्यस्तता पर।

अभी समय नहीं है मेरे पास
लाना है मुझे शहद इकट्ठा कर,
पुष्प वन में जा रहे हम सब
मधुकर एक साथ मिलकर।

छोटी-छोटी चिटियां बता जाओ
जा रहे हो कहा दलबद्ध होकर,
मन में बड़ी जिज्ञासा है बताओ
क्या ढूंढ रहे हो तुम सब मिलकर?

आ रहा है ठंड का मौसम
रखना है हमें भोजन एकत्र कर,
ठंड से बहुत ही डर लगता है
नहीं आएंगे हम घर से निकल कर।

तुम भी जाओ पढ़ो किताबें
दिखाओ सब को कुछ बनकर,
समय होता है कीमती बहुत
यह समय ना आएगा लौटकर।

तुम हो एक नन्हा बालक
अनेक कर्म तुम्हें है करना,
परिश्रम के बिन संभव नहीं
जग में शीश ऊंचा रखना।

हार नहीं होती उसकी कभी
आलस्य से जो दूर रहता,
सफलता कदम चूमे उसकी
जग में अमर नाम हो जाता।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]