ग़ज़ल
उन्हें मुफलिसी से उठा कर तो’ देखे
विरादर में’ अपने मिलाकर तो’ देखे |
महल जानते कष्ट क्या झोपडी का
महल झोपडी द्वार आकर तो’ देखे |
वफादार कोई नहीं बेवफा सब
अधम की वफ़ा आजमाकर तो’ देखे |
सभी रहनुमा एक जैसे बने है
कोई झोपडी दर्द जाकर तो’ देखे |
घृणा द्वेष औ नफरतों को जलाकर
मुहब्बत खज़ाना लुटाकर तो’ देखे |
भुजायें उठी मारने के लिए सिर्फ
कभी वो भुजाएं बढाकर तो’ देखे |
रहे साथ मिलकर, यही चाहते सब
अछूतों को’ सीने लगाकर तो’ देखे |
वो’ धनवान के हैं पुजारी, यही सच
गरीबों के’ हक़ को दिलाकर तो’ देखे |
कालीपद ‘प्रसाद’