गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

शम्मा की तरह परवाना जलता रहेगा।
ताक मे बैठकर वो आहे भरता रहेगा।

नही आमंत्रण है उसे करीब आने का।
दूर से देखो दीदार अब करता रहेगा।।

जमीं की तिश्नगी पुकारती जोर शोर से।
बादल बरसने को फिर तरसता रहेगा।।

नही वफा सीखी अगर उसने प्यार में।
चांद बन आंसमा में ही चमकता रहेगा।।

हो गया चर्चा बेसुमार इस बाजार में।
सच्ची चाहत को वो भटकता रहेगा।।

तीर है पार ये अब दिल के हुआ सनम।
धड़कनो का दस्तूर भी बदलता रहेगा।।

खुदाया पाक शौक से बुला ले न कहीं।
किस्सा जन्मो तलक ये चलता रहेगा।।

देकर जख्म पे जख्म है विदा किया।
दौर फिर भी दीदार का चलता रहेगा।।
@प्रीती श्रीवास्तव।।

प्रीती श्रीवास्तव

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