नकारात्मक सोच
नासमझ मन
नकारात्मक सोच में डूबा
जंगल की लताओं सा
उलझा रहता है
ढूंढता उजाले को
अंधेरे रास्ते पर चल पड़ता है
मनोबल की कमी से
भटकता
सभंलने की कोशिश में
बार-बार गिरता
दुखद पलों को याद कर
टूटता, बिखरता
परिणाम की असफलता से
भयभीत हो
कर्म करने से डरता
कमियों को ढूंढता
आलोचना में डूबा रहता
ईर्ष्या ,द्वेष, क्रोध और रुदन को
गहना बनाकर
विश्वास खोकर
अपनो से दूर हो
अपने आप में सिमटता
तनाव की पोटली लिए
जीवन को कोसता
फूल छोड़ कांटों को चुनता
अंतरमन में झांकने से डरता
अंहकार से भरा
पथ पर पल-पल पछताता
दुर्लभ जीवन को व्यर्थ कर
धरती से चला जाता।
— निशा नंदिनी
तिनसुकिया, असम