पहेली (कविता)
तेरी पहेली सुलझाऊँ कैसे
ए जिंदगी तुझे रिझाऊँ कैसे
वक्त ने तन्हाई दी हमें
अब खिलौनों से खेलकर
जिंदगी तुझे मनाउँ कैसे?
कभी बच्चों से घर आँगन
गुलजार हुआ करता था।
अब अकेले पन में मन को
बहलाऊँ कैसे ?
सितम सहने की आदत
वर्षों पहले लग गई
अब बेबात मुस्कूराऊँ कैसे?
ईश्वर प्रदत्त खुशियाँ मिली अपार
फिर भी मन भटकता है।
चाहतें क्या है तेरी
काश कानों में तुम कह पाती
फिर से बोझिल तन मन में
उत्साह जगाऊँ कैसे?
आरती राय.दरभंगा.बिहार.