ग़ज़ल – आजकल
काट सका जो यूपी फीता।
दिल्ली समझो वो ही जीता।
यूपी का रण जो भी हारा,
घट रहता है उसका रीता।
कृष्णउन्हेफिर जितवाते ही,
जनता की गर पढ़ते गीता।
वोट हमारे पाकर जीते,
रोज़ रटें अम्बानी नीता।
सत्ता पाकर भूला हमको,
खूनहमारा निशिदिन पीता।
क्या बतलायें तुमको कैसे,
पाँच बरस है अपना बीता।
🌹 हमीद कानपुरी 🌹