कविता

जिम्मेदारी

सर्द हवाओं में सुबह के अंतिम अंधकार में,
मुँह और सर को ढककर वो अपने बच्चो की
पढ़ाई कमाने के लिए घर से निकल पड़ा है।

शाम ढले तक बच्चो को खिला सके भरपेट खाना,
बस बच्चो की वो भूख को मिटाने का उपाय,
कमाने को बिना भौर का इंतेज़ार करे वो घर
से निकल पड़ा है।

माँ के दुखते हाथ – पैर का दर्द मिटाने की दवाई
कमाने के लिए वो सर्द हवाओं के थपेड़े सहता
हुआ उम्मीद का दामन थामे घर से निकल पड़ा है।

कितना भी कष्टदायक हो जीवन का सफर,
बेशक करनी हो उसको जाकर किसी की
भी जी हजूरी,पर वो जीवन की हर जिम्मेदारी
को कमाने के लिए घर से निकल पड़ा है।

घर वापस आकर भी जीवन की कुछ ऐसी
लाचारी,जिम्मेदारी पूरी करने में रात भी हो
जाती कुछ ज्यादा ही काली,बच्चो के सोने
के बाद ही आती है उनसे मिलने की बारी।

भविष्य,बच्चो के साथ बिताने की उम्मीदों
में ,कुछ सोते,कुछ जागते रहने में बस बीत
जाती है उसकी रात सारी और फिर से वही
दुबारा दिनचर्या को जीने की आ जाती बारी।
बस गरीब की जिंदगी ऐसे ही गुजरती सारी।

नीरज त्यागी

पिता का नाम - श्री आनंद कुमार त्यागी माता का नाम - स्व.श्रीमती राज बाला त्यागी ई मेल आईडी- [email protected] एवं [email protected] ग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)