फिर सदाबहार काव्यालय-12
अहसास
एक खूबसूरत
अलसाई जी सुबह
सैर करने को बुला रही थी
बारिश का अंदेशा है तो क्या
भीगने का डर निकालकर
घर से बाहर निकलने को
समझा रही थी
घर से बाहर निकलने की देर थी
कि
अहसास हुआ
झीनी-झीनी बौछार का
लेकिन यह क्या!
सड़कें गीली-गीली सी
बहारें सीली-सीली सी
मन भीगा-भीगा सा
लेकिन तन पर
पानी की बूंद का नामोनिशान नहीं
केवल अहसास
झीनी-झीनी बौछार का.
इस अहसास ने
दिलाया एक और अहसास
उस परमसत्ता का
जिसका अहसास हमें हो-न-हो
वह हरदम हमारे आस-पास है
कोई देश हो
कोई भेष हो
कोई स्थान हो
रेला-मेला हो या सुनसान हो
वह हमारे साथ है
किसी-न-किसी रूप में
हमारे हाथ में उसका हाथ है.
वही
हर पल हमारी खबर लेता है
दर्द से पहले दवा भी देता है
वह अंधकार भी दिखाता है
ताकि
हमें उजाले का अहसास हो सके
दुःख दिखाता है
ताकि
सुख की सुखद अनुभूति हो सके
धैर्य की जरूरत हो
वह धैर्य बन जाता है
सहानुभूति की जरूरत हो
वह सहानुभूति बन जाता है
साहस की दरकार हो
वह साहस बन जाता है
हरदम हमारा साथ निभाता है.
अपनी अहैतुकी कृपा से उसने
कभी अटकने न दिया
कभी भटकने न दिया
कभी लटकने न दिया
हर विपदा से उबार लिया.
इस अनूठे अहसास के चलते
27 मिनट की सैर में
72 साल का अहसास जी लिया
मानो
परमसत्ता की रहमत का
मधुरिम पंचामृत पी लिया.
लीला तिवानी
मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.
मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.
मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
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प्रभु की अहैतुकी कृपा का अहसास हमें हर पल होता रहता है, लेकिन लुप्त-गुप्त भाव से. हम अपने अहंकार में इतने विलुप्त होते हैं, कि कभी-कभी उसकी सत्ता को ही नकार देते हैं. किसी लघुताम उपलब्धि को भी हम अपनी ही उपलब्धि मान बैठते हैं. इसी प्रवृत्ति के चलते वह अपनी प्रभुता को हमसे छिपाए रखता है. हमारे शिद्दत से उसकी सत्ता को महसूस करते ही वह अपने अनूठे अहसास रूपी कृपा के मधुरिम प्रसाद से हमको आह्लादित करता है, फिर हर पल उसीका अहसास बाकी रह जाता है. ”मैं-मैं” के बदले ”तू” और ”तेरा” प्रधान हो जाता है. उस पल का आनंद अपार और स्थाई होता है.