क्रंदन करते रिश्ते
क्रंदन करते रिश्ते
तलाश रहे नई राह
टूटी माला के मोतियों से बिखर रहे हैं
दूर हो रहे अपने धागे से
जिसने सबको एक साथ बांधे रखा
रुई की भांति हल्की हो रही हैं संवेदनाएँ
और उड़ रही हवा के झोंके से
खून अब पानी से पतला हो रहा है
किसे चिंता
उन बूढ़े माता- पिता की
जवानी बच्चों का भविष्य बनाने में निकल गई
और बुढ़ापे में सहमे रहते हैं
क्यूंकि शहर में वृद्ध आश्रम खुल चुका है
चाचा-चाची, मामा-मामी
बुआ-फूफा ये शब्द खो रहे हैं महत्व
जैसे इत्र की गंध उड़ जाती है कुछ देर बाद
भईया भाभी से भी बस फोन पर होती है बात
मित्र-सखा का स्थान
ले लिया है मोबाइल और लैपटॉप ने
सोशल मीडिया पर भले ही
बना लिए हजारों मित्र और
आभासी दुनिया का मज़ा लूट रहे हों
दादी की कहानियाँ
बुआ का प्यार
चाचा का घुमाने ले जाना
नाना नानी के घर छुट्टियाँ मनाना
मामा को करना परेशान
आभासी दुनिया में ये नहीं हो सकता
कुछ देर का भ्रम है
और फिर
मानसिक तनाव और मनोरोग
सोशल मीडिया से पनपते आधुनिक रिश्ते
स्थिर नहीं हैं
मेमोरी जल्दी भर जाती है
और हो ही जाते हैं डिलीट
मानव मन चंचल पंछी है
ढूँढता रहता है खुशी इस डाल उस डाल
ये भागता रहता है
जुगनू की रोशनी के पीछे
मानव के काम तो मानव ने ही आना है
मोबाइल, लैपटाप या सोशल मीडिया
सुविधा के लिए हैं
आभासी दुनिया एक भ्रम है
ये मानव रिश्तों का पर्याय नहीं हो सकते