लघुकथा – इतिहास का दोहरान
अभी-अभी विन्नी के मोबाइल पर उसके ऑफिस से मैसेज आया था- ”मुबारक हो, 27वीं कंपनी भी अब आपकी देखरेख में काम करेगी.”
एक और कंपनी की जिम्मेदारी संभालना यानी काम में बढ़ोतरी, ओहदे में ऊंचाई, वेतन में वृद्धि, विन्नी सोचकर खुश हो रही थी. खुशी की बयार ने स्मृति का वातायन भी खोल दिया था.
उसे याद आ गई ममा द्वारा सुनाई गई उनके पापा के जीवट की कहानी. इस कहानी में से उसे केवल दो बातें विशेष रूप से याद रह पाई थीं, नाना जी का 27 गावों की पोस्ट ऑफिसों का पोस्टमास्टर होना और उनका कॉमर्स स्ट्रीम से पढ़ाई करना.
फिर विन्नी की शिक्षा में जद्दोजहद का वह मुकाम आया था, जो प्रायः सभी बच्चों के सामने आता है.
दसवीं क्लास की बोर्ड परीक्षा में विन्नी गणित में 99 और विज्ञान में 95 नंबर लाई थी. अपने स्कूल से वह दोनों में प्रथम थी. स्कूल में प्रधानाचार्या ने कहा- ”विन्नी, साइंस लोगी न!”
”मैडम, मेरी रुचि कॉमर्स में है.”
घर में भी यही- ”हमारी बेटी साइंस लेगी, हमारे घर में भी कोई डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहिए.” साइंस में पी.जी. किए पापा ने कहा था. रोज रात को डिनर पर इस बात पर बहस होती थी.
”ममा, मेरी रुचि कॉमर्स में है. आप तो खुद टीचर हैं, आप मेरा साथ देना.”
”बिलकुल बेटा, चिंता मत कर, पर एक बात बता कॉमर्स ही लेना था, तो साइंस में इतनी जी-तोड़ मेहनत क्यों की?”
”ममा, कल को कोई यह न कह सके कि इसको साइंस में एडमीशन नहीं सका था, इसलिए कॉमर्स ली थी.”
ममा ने अपने स्कूल की काउंसलर मिसेज बैनर्जी से काउंसिलिंग करवाई थी. मिसेज बैनर्जी ने एक नहीं तीन-तीन बार टैस्ट लिया, तीनों बार परिणाम कॉमर्स ही आया- ”विन्नी को कॉमर्स ही दिलवाना, खूब चमकेगी.” मिसेज बैनर्जी ने ममा से कहा था.
उस दिन से ममा ने सख्ती से रोज रात को डिनर पर होने वाली बहस बंद करवा दी थी.
उसके बाद कॉमर्स ऑनर्स, एम.एफ.सी., कैंपस से शानदार नौकरी, विवाह के बाद विदेश में निवास, फिर वहां नौकरी सब जल्दी-जल्दी हो गया था.
कॉमर्स की रुचि, गणित की विशेष योग्यता, हर क्षेत्र का सामान्य ज्ञान, वाक-चातुर्य, प्रोजेक्ट का शानदार प्रस्तुतिकरण, सबने मिलकर उसे कहां-से-कहां पहुंचा दिया था और आज 27वीं कंपनी. 27 और कॉमर्स! उसे नाना जी की बहुत याद आ रही थी.
इतिहास का दोहरान जो हुआ था!
अभी-अभी विन्नी के मोबाइल पर उसके ऑफिस से मैसेज आया था- ”मुबारक हो, 27वीं कंपनी भी अब आपकी देखरेख में काम करेगी.”
एक और कंपनी की जिम्मेदारी संभालना यानी काम में बढ़ोतरी, ओहदे में ऊंचाई, वेतन में वृद्धि, विन्नी सोचकर खुश हो रही थी. खुशी की बयार ने स्मृति का वातायन भी खोल दिया था.
”तुम्हारे नाना जी 27 गावों की पोस्ट ऑफिसों के पोस्टमास्टर थे. सुबह-सुबह 27 पोस्टमैन अपने-अपने गांव से डाक के थैले लाते थे, दोपहर तक डाक की छंटाई होती थी, लंच के बाद वे अपने-अपने गांव की डाक लेकर जाते थे.” ममा बताया करती थीं.
”नाना जी ने कौन-सी स्ट्रीम से पढ़ाई की थी?” विन्नी ने पूछा था.
”कॉमर्स.”
”वाउ!” विन्नी को हैरानी हुई थी.
इस पूरी कहानी में विन्नी को बस दो चीजें विशेष रूप से याद रह गई थीं- 27 और कॉमर्स.
फिर विन्नी की शिक्षा में भी जद्दोजहद का वह मुकाम आया था, जो प्रायः सभी बच्चों के सामने आता है.
दसवीं क्लास की बोर्ड परीक्षा में विन्नी गणित में 99 और विज्ञान में 95 नंबर लाई थी. अपने स्कूल से वह दोनों में प्रथम थी. स्कूल में प्रधानाचार्या ने कहा- ”विन्नी, साइंस लोगी न!”
”मैडम, मेरी रुचि कॉमर्स में है.”
घर में भी यही- ”हमारी बेटी साइंस लेगी, हमारे घर में भी कोई डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहिए.” साइंस में पी.जी. किए पापा ने कहा था. रोज रात को डिनर पर इस बात पर बहस होती थी.
”ममा, मेरी रुचि कॉमर्स में है. आप तो खुद टीचर हैं, आप मेरा साथ देना.”
”बिलकुल बेटा, चिंता मत कर, पर एक बात बता कॉमर्स ही लेना था, तो साइंस में इतनी जी-तोड़ मेहनत क्यों की?”
”ममा, कल को कोई यह न कह सके कि इसको साइंस में एडमीशन नहीं सका था, इसलिए कॉमर्स ली थी.”
ममा ने अपने स्कूल की काउंसलर मिसेज बैनर्जी से काउंसिलिंग करवाई थी. मिसेज बैनर्जी ने एक नहीं तीन बार टैस्ट लिया, तीनों बार परिणाम कॉमर्स ही आया- ”विन्नी को कॉमर्स ही दिलवाना, खूब चमकेगी.” मिसेज बैनर्जी ने ममा से कहा था.
उस दिन से ममा ने सख्ती से रोज रात को डिनर पर होने वाली बहस बंद करवा दी थी.
उसके बाद कॉमर्स ऑनर्स, एम.एफ.सी., कैपस से शानदार नौकरी, विवाह, विवाह के बाद विदेश में निवास, फिर वहां नौकरी सब जल्दी-जल्दी हो गया था.
कॉमर्स की रुचि, गणित की विशेष योग्यता, हर क्षेत्र का सामान्य ज्ञान, वाक-चातुर्य, प्रोजेक्ट का शानदार प्रस्तुतिकरण, सबने मिलकर उसे कहां-से-कहां पहुंचा दिया था और आज 27वीं कंपनी. 27 और कॉमर्स! उसे नाना जी की बहुत याद आ रही थी.
इतिहास का दोहरान जो हुआ था!
जब भी स्ट्रीम के विकल्प की बात आती है, तो अधिकतर परिवारों में ऐसी जद्दोजहद अक्सर होती रहती है. एक बात तो निश्चित है, कि बच्चे को अपनी रुचि का विषय लेने की इजाजत दी जाए, तो पढ़ाई में उसका मन रम जाता है. उसका भविष्य तय करने के लिए उसे परामर्श अवश्य देना चाहिए, पर थोपना कतई उचित नहीं है. आजकल तो इसी बात पर बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेने में भी नहीं चूकते.