गीत/नवगीत

गणपति बोले शंकरजी से, सुन लो मेरी मांग प्रभु

गणपति बोले शंकरजी से, सुन लो मेरी मांग प्रभु
इससे पहले लीन तपस्या, हो जाओ पीकर भांग प्रभु
मेरे हाथों में भी कोई, सुन्दर सुन्दर हाथ रहे
हरदम उसके साथ रहूँ और, मै भी गाऊँ सांग प्रभु

गणपति बोले शंकरजी से………………………..

तुम तो रहते मइया के संग, विष्णु लक्ष्मी साथ लिये
ब्रम्हा जी ब्रम्हाणी से संग, कान्हा जी बारात लिये
हम तो बैठे बिकट कुवांरे, मेरा भी उद्धार करो
अब तो कोई तिथि निकालो, दिखवाओ पंचांग प्रभु

गणपति बोले शंकरजी से………………………..

आ जायेगी मेरी दुल्हनियां, तुमको भोग लगायेगी
मइया के वो काम करेगी, घर भी मेरा बसायेगी
जीवन गाड़ी दो पहियों की, हरदम साथ जो चलते हैं
मेरी गाड़ी खड़ी हुयी है जैसे हो इक टांग प्रभु।

गणपति बोले शंकरजी से………………………..

सुनकर बातें गणपति जी की शंकर को हंसी आयी थी।
पास खड़ी थीं गौरा जी भी मन्द मन्द मुस्कायी थी।
बोलीं मेरे प्यारे बेटे तेरा ब्याह कराऊँगी
सबकी होती एक दुल्हनियां दो दो तुम्हें दिलाऊँगी

झूम झूम फिर गणपति नांचें करते हैं डिंग डांग प्रभु
इससे पहले लीन तपस्या, हो जायें पीकर भांग प्रभु

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,