कविता

पुरूष प्रेम

ऐ, सुनो !
मैं तुम्हारी तरह
माँग में सिन्दूर भरकर नहीं घूमता।
लेकिन मेरी प्रत्येक प्रार्थना में
सम्मिलित पहला ओमकार तुम ही हो।

ऐ, सुनो!
मैं तुम्हारी तरह
आँखों में काजल नहीं लगाता।
लेकिन मेरी आँखों को सुकून देने वाली
प्रत्येक छवि में तुम्हारा ही अंश दिखता है।

ऐ, सुनो!
मैं तुम्हारी तरह
कानो में कुंडल नहीं डालता ।
लेकिन मेरे कानों तक पहुँचने वाली
प्रत्येक ध्वनि में तुम्हारा ही स्वर होता है।

ऐ, सुनो!
मैं तुम्हारी तरह
गले में मंगलसूत्र बाँधकर नहीं रखता।
लेकिन मेरे कंठ से निकले प्रत्येक शब्द का
उच्चारण तुम से ही प्रारम्भ होता है।

ऐ, सुनो!
मैं तुम्हारी तरह
पैरों में महावर लगाकर नहीं चलता।
लेकिन मेरे जीवन लक्ष्य की ओर जाने वाला
प्रत्येक मार्ग, तुमसे ही प्रारम्भ होता है।

ऐ, सुनो!
मैं तुम्हारी तरह
पैर की अंगुलियों में बिछिया नहीं बाँधता।
लेकिन मेरी जीवन की प्रत्येक खुशी की डोर
तुमसे ही बँधी हुयी है।

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,