गज़ल
दूर होकर भी मेरे दिल के बेहद पास लगती है
हज़ारों सूरतों में वो सूरत-ए-खास लगती है
मिल जाए तो जीने का मज़ा आ जाए मुझको भी
बिना उसके मुझे ये ज़िंदगी वनवास लगती है
वो मेरे साथ चल रही है डाल के बाहें बाहों में
झूठी है मगर कितनी हसीं ये आस लगती है
बताओ तो यही हैं क्या मरीज़-ए-इश्क के लक्षण
नींद आती नहीं शब भर भूख न प्यास लगती है
तरबतर तन-बदन हो जाता है मेरा खुशबुओं से
उसके आने से पतझड़ भी मुझे मधुमास लगती है
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।