कविता

फिर सदाबहार काव्यालय-13

कविता – रक्त कणिका

था फूल इक गुलाब का
डाली में उसकी काँटा भी था
तोड़ने लगा जब वह फूल
उंगली में जा लगा था शूल
उंगली रूपी डाली पर खिला
लाल रंग का वह एक फूल.

वह फूल था इक रक्त कणिका
जैसे चमकती हो कोई मणिका
गुलाब से सुगन्धित हुआ था जीवन
कणिका ने मानव को दिया था जीवन.

सीमा पर गोली चुभती कंटिका-सी
रक्तिम आभा चमकती मणिका-सी
होने को मातृभूमि पर कुर्बान
कणिकाएँ बहा देता है जवान

ये जवान हैं मातृभूमि की शान
बहुत है कीमती इनकी जान
बदले में इन्हें अधिक न चाहिए
बस कुछ रक्तिम कणिकाएँ चाहिएँ
ताकि ये फिर से उठ खड़े हों
मातृभूमि और दुश्मन में दीवार बनने को

टूटने न दें कभी इस दीवार को हम
दीवार खड़ी है तो सुरक्षित हैं हम
इस दीवार की जान है रक्तिम धाराएँ
इन धाराओं को न सूखने दो तुम
रक्त अपना देकर सींचो इन्हें तुम
रक्त अपना देकर सींचो इन्हें तुम

आओ मिलकर करें रक्त दान
उनके लिए जो हैं हिंद की शान
जब रक्त हमारा बहेगा वीरों में
तब हम भी कहलायेंगे जवान
आओ मिलकर करें रक्त दान
आओ मिलकर करें रक्त दान
जय जवान ! जय जवान !
सुदर्शन खन्ना

मेरा परिचय
21 जुलाई 2018 को ब्लॉग लेखन के क्षेत्र में मेरे पदार्पण के लिए मैं अपनी सहधर्मिणी स्मृति, दोनों बेटियों स्वाति और सौम्या के प्रति कृतज्ञ हूँ । मेरे स्वर्गीय पिताजी श्री कृष्ण कुमार खन्ना जी के प्रति मैं आजीवन ऋणी रहूँगा जिन्होंने मुझे ज्ञान प्राप्त करने में हमेशा मदद की और अपनी सामर्थ्य से भी बढ़कर मेरा संबल बढ़ाया । मेरी पूजनीय माता श्रीमती राज रानी खन्ना का ममत्व और आशीर्वाद मेरे लिये स्तम्भ का कार्य करता है । वे इस समय 81 वर्ष की हैं । ब्लॉग लेखन की शुरुआत का मेरे लिए अर्थ था एक बीज बोया जाना । बीज बोने के बाद उसका प्रस्फुटन होकर एक पौधे का रूप लेना और फिर आशीर्वाद रूपी खाद लेकर वृक्ष में विकसित होने की प्रक्रिया का आरम्भ होना । अतः ‘दरख्त’ विषय से बलॉग लेखन की शुरुआत करना मुख्य कारण रहा । अपना ब्लॉग पर ‘सुदर्शन नवयुग’ नामक वृक्ष को आपका स्नेह और आशीर्वाद निरन्तर मिल रहा है और यह विकसित हो रहा है, इसके लिए मैं आभारी हूँ । सुदर्शन और नवयुग दोनों ही नाम माता-पिता के दिए हुए हैं अतः ‘सुदर्शन नवयुग’ ब्लॉग को मैं अपने माता-पिता को समर्पित करता हूँ ।
पिताजी का इन्दौर स्थित संस्थान ‘मुद्र कला मन्दिर’ टाइपिंग व शॉर्टहॅण्ड की विधाओं के नाम को सार्थक करता था । दिल्ली आने के बाद पिताजी ने नाम रखा ‘नवयुग कमर्शियल कॉलेज’ । ‘नवयुग’ इसलिए कि पिताजी का पढ़ाने का तरीका लीक से हटकर एकदम नवीन होता था । ‘नवयुग कमर्शियल कॉलेज’ नाम आज भी लोगों की सेवा में कार्यरत है ।
मैंने अपने जीवनकाल में हिन्दी व अंग्रेजी भाषी अनेक शोध-पत्रों का व्याकरण और भाषा-सम्मत विवेचन किया । अनेक लेखकों ने अपने शोध-ग्रंथों में उल्लेख कर धन्यवाद ज्ञापन किया । मैंने प्रो. अशोक चावला जी द्वारा प्रकाशित ज्योतिष पर आधारित मासिक पत्रिका का दस वर्षों तक सम्पादन किया ।
मैं द्रोणाचार्य भूपेन्द्र धवन बॉडी-बिल्डिंग व पॉवर-लिफ्टिंग कोच के साथ पिछले 35 वर्षों से सक्रिय रूप से जुड़ा हूँ । मुझे सम्मान के तौर पर अनेक ट्रॉफियाँ पुरस्कार स्वरूप मिली हैं । एक प्रतियोगिता में बाँटे गए प्रमाण-पत्रों को मेरे द्वारा लिखवाया गया क्योंकि पिताजी द्वारा सिखाये गये सुलेख की प्रतिभा से वे लोग परिचित थे । 400 के लगभग प्रमाणपत्र लिखे। विजेता और भाग लेने वाले पंक्तिबद्ध खड़े होते थे लिखवाने के लिए ।

लालीबाई चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) से भी पिछले 20 वर्षों से सक्रिय रूप से जुड़ा हूँ । नेत्र जाँच और रक्तदान संबंधी आयोजनों में सक्रिय सहयोग रहता है ।
मेरे वर्तमान परिवार में मेरी सहधर्मिणी स्मृति, बेटियों स्वाति व सौम्या ने प्रबुद्धजनों से मेरे मेल-मिलाप को देखते हुए बार-बार ब्लॉग लिखने का कहा और देरी के लिए नाराजगी भी जताते रहे । अंततः वे 21 जुलाई 2018 को सफल हो गए जब मेरा पहला ब्लॉग छपा । और भी अनेक बातें होंगी, शेष फिर कभी ।

ब्लॉग साइट- सुदर्शन नवयुग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/mudrakalagmail-com/

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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फिर सदाबहार काव्यालय-13

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर सुदर्शन भाई जी, कविता में कमाल है या कमाल में कविता, बहरहाल बहुत ही सुंदर काव्य-सृजन. एक-एक पंक्ति देशभक्ति और रक्तदान की प्रेरणा से सींची हुई है. ‘सीमा पर गोली चुभती कंटिका-सी’ इस कविता की खूबसूरती है. कंटिका शब्द आपने नया गढ़ा है और गोली के स्त्रीलिंग होने के कारण कंटिका भी स्त्रीलिंग मैच कर रहा है. कंटिका-सी के साथ मणिका-सी की तुक भी अच्छी मिल गई है. इसमें एक और विशेषता है- ”जवान गोली को कंटिका यानी छोटे-से कांटे के समान समझता है है. जवान हैं, तो हम सुरक्षित हैं’ का संदेश देती हुई बहुत खूबसूरत कविता के लिए हार्दिक आभार एवं धन्यवाद. शेष फिर.

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