फिर सदाबहार काव्यालय-14
कविता
मुस्काएं खुशियां-ही-खुशियां
उगता हुआ सूरज हो, हरियाली हो,
मेरी इच्छा है देश में खुशहाली हो,
हर एक की आंखों में चमकता नूर हो,
हर चेहरे पर खुशियों की लाली हो.
किंतु यह सब कैसे होगा?
महंगाई की मार पड़ी है,
एक तरफ से ध्यान हटे तो,
नई समस्या मुहं बाए खड़ी है.
भ्रष्टाचार ने इतना सताया,
आम जनों का सिर चकराया,
कहां समस्या का हल पाएं,
कोई भी तो समझ न पाया!
स्वाइन फ्लू भी बनी समस्या,
इसने फंदे में जकड़ा है,
कहते हैं सब डर मत इससे,
डर इसका पर बहुत बड़ा है.
समलैंगिकता के सर्पों ने,
अपनी संस्कृति को डस डाला,
जिसका नाम न लेता कोई,
खुले आम पड़ा उससे पाला.
अब कैसे बच पाएं इनसे,
कोई बताए, कोई समझाए,
कैसे जीवित रहे सभ्यता,
कैसे संस्कृति सांस ले पाए?
इच्छा मेरी कोई न रंजित,
खुश हो, बस खुश हो ये दुनिया,
सबके चेहरे खिले-खिले हों,
मुस्काएं खुशियां-ही-खुशियां.
लीला तिवानी
मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.
मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.
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