ग़ज़ल – छलकता पैमाना
उनकी आंखो में छलकता हुआ पैमाना है
बाख़ुदा दिल भी उसी मय का तो दीवाना है
यूं तो रहते हैं वो ख़ामोश झुकी नज़रों से
अदाएं शोख़ का अंदाज़ कातिलाना है
खुलेंगे होंठ ताे अंज़ाम जाने क्या होगा
बंद कलियों का ये आगाज़ आशिकाना है
ख़िले हुये ये माहताब से हसीं रुख़ पे
घटाओं जैसे गेसूओं का शामियाना है
दिल के अख़लाक से भरा ये सरापा रौशन
उनके तो इश्क की बातें भी सूफ़ियाना है
दिल के ऐवान में रौशन सभी चराग़ हुये
रुह के वस्ल का क्या खूब आशियाना है
पुष्पा ” स्वाती “