रंग-ए-बसंती
घुला मौसम-ए-रंग बसंती बसंती,
उसपे हवाओं की ये शोख मस्ती,
खुदा की कसम ये हसीं यूं न होती,
अगर इसमें शामिल मोहब्बत न होती।
रंगे रंग बसंती गुलों के ये चेहरे,
ये शब़नम की बूंदों के मोती सुनहरे,
सब़ा संग इनके न यूं गुनगुनाती
अगर इसमें शामिल मोहब्बत न होती।
ये रंगी फ़िजाएं, ये दिलकश नज़ारे,
ये झिलमिल चमकते,हुये चांद तारे,
फ़लक पे बिछी, चांदनी यूं न होती।
अगर इसमें शामिल, मोहब्बत न होती।
समां है बसंती, बहारें बसंती,
हुआ खुशनुमां, सारा आलम बसंती,
जर्मी पे न यूं धूप है खिलखिलाती।
अगर इसमें शामिल, मोहब्बत न होती।
“स्वाती”जलाएं ,यूं दिल की शमां,
उम्मीदों के हो जाएं रौशन जहां,
लबों पे तबस्सुम, की कलियां न खिलती।
अगर इसमें शामिल मोहब्बत न होती।
पुष्पा अवस्थी “स्वाती”