कविता

रंग-ए-बसंती

घुला मौसम-ए-रंग बसंती बसंती,
उसपे हवाओं की ये शोख मस्ती,
खुदा की कसम ये हसीं यूं न होती,
अगर इसमें शामिल मोहब्बत न होती।

रंगे रंग बसंती गुलों के ये चेहरे,
ये शब़नम की बूंदों के मोती सुनहरे,
सब़ा संग इनके न यूं गुनगुनाती
अगर इसमें शामिल मोहब्बत न होती।

ये रंगी फ़िजाएं, ये दिलकश नज़ारे,
ये झिलमिल चमकते,हुये चांद तारे,
फ़लक पे बिछी, चांदनी यूं न होती।
अगर इसमें शामिल, मोहब्बत न होती।

समां है बसंती, बहारें बसंती,
हुआ खुशनुमां, सारा आलम बसंती,
जर्मी पे न यूं धूप है खिलखिलाती।
अगर इसमें शामिल, मोहब्बत न होती।

“स्वाती”जलाएं ,यूं दिल की शमां,
उम्मीदों के हो जाएं रौशन जहां,
लबों पे तबस्सुम, की कलियां न खिलती।
अगर इसमें शामिल मोहब्बत न होती।

पुष्पा अवस्थी “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है