परिचर्चा – कैसे मजबूत और अमर बने भारतीय गणतंत्र
वर्तमान समय में गिरते राजनीतिक स्तर लोकसभा चुनाव की आहट के मध्य हम सत्तरवां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं जब कई बार इस दिन मीडिया चैनलों के सामने इस राष्ट्रीय पर्व पर बहुत से लोग अनभिज्ञता दर्शातें है या सही नहीं बता पाते।बहुत से स्थानों पर यह पर्व औपचारिकता मात्र रह गया है।कुछ तो अवकाश के लिए स्मरण रखने लगे हैं।इस राष्ट्रीय पर्व पर पहले जैसी गम्भीरता व आम जनमानस में भी वह उत्साह नहीं रहा।भारतीय गणतंत्र को कैसे मजबूत और अमर बनाया जा सकता है।आम जनमानस में पुनः पहले सा उत्साह जगाया जा सकता है।पर कुछ लेखक मित्रों के विचार प्राप्त हुए हैं जिनको परिचर्चा के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूं।
नीरू तनेजा का कहना है कि यह सत्य है कि गणतंत्र दिवस मनाना औपचारिकता मात्र रह गया है नेता हों या जनता वे भूतकाल को भुलाकर भविष्य में अधिक रुचि लेने लगे हैं।उनकी रुचि आगामी नेता के लिए अधिक है। इसका दुखद पहलू यह है कि भविष्य के कर्णधारों में भी इसके लिए कोई जागृति पैदा नहीं की जाती। जागरूक संस्थाओं को घर परिवारों को इसके लिए प्रेरित करना चाहिए।कुछ समय उन्हें अपने देश के उन वीरों को भी स्मरण करना चाहिए जिनके कारण आज वह यह पव्र मना रहे हैं नेता चुन रहे है।
प्रतिभा अग्रवाल का मानना है कि हम जिन वीरों के कारण यह गणतंत्र दिवस मना रहे है और जिनके सीमा पर पहरे के कारण हम सुरक्षित हैं उनको स्मरणकर व हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई आपस में मिलकर रहकर इस पर्व को मनाकर इसको अमर कर सकते हैंपहले हमारा देश सोने की चिड़िया कहा जाता था। हम सबके प्रयास से ईमानदारी से इसके प्रति समर्पण भाव से एक बार पुनः बन सकता है।
डा– देशबन्धु शाहजहांपुरी जी का कहना है कि हमें अपना गणतंत्र सदैव अमर बनाये रखने के लिए उन बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा जिनके कारण हमें लम्बे समय तक गुलामी की बेंड़ियों में जकड़े हुए जीवन जीने पर मजबूर होना पड़ा। हम सबको अपने कम्र के प्रति सदैव सजग रहना होगा। आलस्य लालच और ईर्ष्यालु प्रवृत्ति का त्याग करके अपने देश को वैज्ञानिक रूप से सुद्ृढ़ बनाना होगा। हम सबको मिलकर अपने अपने क्षेत्रों में इतनी प्रगति करनी होगी जिससे हमारे देशका नाम सम्पूर्ण विश्व में रोशन हो सके।
संजय भारद्वाज जी का मानना है कि गणतंत्र को मजबूत करने के लिए हमें अपने मताधिकार के महत्व को समझना होगा। जातिवाद क्षेत्रवाद साम्प्रदायिकता को नकारना होगा। ईमानदारी जिम्मेदारी के भाव को जाग्रत रखना होगा। अदालती प्रक्रिया को तेज करना होगा। सोचना होगा कि हम देश को क्या देते हैं न कि देश हमें क्या देता है। सही नेताओं को संसद में पहुंचाना होगा। नारी शक्ति को और जागृत करना होगा। सभी देश वासियों को एक होना पड़ेगा शिक्षा का प्रसार करना होगा।
विजय तन्हा जी का कहना है कि देश की आजादी के बाद कुछ समय तक लोक तंत्र की व्यवस्थायें सुचारू रूप से चलीं पर गन्दी राजनीति ने दूरियां बढ़ा दीं। आज चुनाव शब्द का अर्थ बदल गया। लालच प्रलोभन हावी हो गया।जनप्रतिनिधियों की समाजसेवा किसी से छुपी नहीं है।अन्नदाता आत्महत्या कर रहा है। दूसरी ओर एक जनप्रतिनिधि एक चुनाव जीतकर अरबों से खेलता है। वास्तव में गणतंत्र को मजबूत करने के लिए हमारे देश के कर्णधारों को अपना चरित्र साफ कर चुनाव प्रक्रिया को वास्तविक रूप देना होगा। तभी गणतंत्र मजबूत और खुशहाल होगा।
कल्पना आर्य का कहना है कि गणतंत्र की मजबूती के लिए राष्ट्रीयता की भावना पहली आवश्यकता है।जिसे नागरिको को समझना होगा केवल राष्ट्रीय पर्व मनाने से यह भावना नहीं आ सकती। यह जोश सदैव के लिए जगाना होगा। प्रजातंत्र का चौथा स्तम्भ इसके लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। देश के भविष्य बच्चों को साक्षर ही नहीं शिक्षित भी बनाना होगा।देश के गणतंत्र को कमजोर करने वाली शक्तियों के खिलाफ उठकर खड़ा होना होगा।मतदान से पूर्व सही गलत का फर्क करना होगा तभी हमारा गणतंत्र मजबूत और अमर हो सकेगा।
शम्भू प्रसाद भट्ट स्नेहिल का मानना है कि गणतंत्र सम्पूर्ण देश की जनता का वह शासन है जिसमें हर नागरिक बराबर का भागीदार है सबसे गौरवशाली बात यह है कि विभिन्न विचार धाराओं के कारण अलग अलग सोच रखने के बावजूद भी हमारे देश का संवैधानिक प्रजातंत्र आज भी विश्व में सबसे बड़ा गणतंत्र है। मतदाता की गम्भीरता जागरूकता इसको मजबूत बना रही है।
— शशांक मिश्र भारती, संपादक देवसुधा
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