अमर शहीद हेमू कालाणी
अभी कुछ दिन पहले फेसबिक पर एक मैसेज आया था-
”26 जनवरी, शाम 5.30 बजे दिल्ली विधान सभा में भारत के एक क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी अमर शहीद हेमू कालाणी की प्रतिमा का अनावरण किया जाएगा.”
संदेश क्या था, अमर शहीद हेमू कालाणी की शख्सियत का परवाना था. यों तो इस बहादुर बालक हेमू कालाणी को हमारे जन्म से पहले ही अंग्रेजी सरकार ने फांसी पर चढ़ाकर अमर शहीद कर दिया था, पर हमारा बचपन हेमू कालाणी की कहानी सुनते-सुनते ही अग्रसर हुआ था. उन दिनों घर-घर में हेमू कालाणी का किस्सा बच्चों को सुनाना आम बात थी. इसलिए हेमू कालाणी को तो हम कभी भी भुला नहीं पाए, पर आजादी के इतने सालों बाद उनको दिल्ली सरकार का यह सम्मान देना हमें गर्वित कर गया. इस संदेश के पढ़ते ही हमारे सोने का समय हो गया था, पर मन तो हेमू कालाणी की स्मृतियों में रमा हुआ था.
23 मार्च, 1923 को जन्मे हेमू कालाणी भारत के एक क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे. उनका जन्म सिन्ध के सख्खर (Sukkur) में हुआ था. उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं मां का नाम जेठी बाई था.
जब वे किशोर वयस्क अवस्था के थे, तब उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया. सन् 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू इसमें कूद पड़े. 1942 में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी. हेमू कालाणी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई. वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे, फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उन पर पड़ गई और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए. हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई. उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा न देने की अपील की. वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी. 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दी गई. जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की. इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार किया. अंग्रेजी शासन ने उन्हें फांसी पर लटका दिया था. हेमू कालाणी अमर हो गए.
देशभर में जगह-जगह हेमू कालाणी के नाम को अमर करने वाले कॉलोनियां, पॉर्क, चौक हैं. हमारे गृहनगर जयपुर की हमारी कॉलोनी आदर्श नगर (सिन्धी कॉलोनी) में भी हेमू कालाणी पार्क में हेमू कालाणी की प्रतिमा स्थापित की गई है.
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शरणार्थियों का हाल कोई हमसे पूछे! हम भी अपना सब कुछ छोड़-छाड़कर 1947 में सिंध से शरणार्थी बनकर जयपुर में आ बसे थे. बहुत भटकने के बाद आखिर सरकार ने हमें आदर्श नगर (सिन्धी कॉलोनी) जयपुर में सिंध में छोड़ी हुई सम्पत्ति के एवज में एक प्लॉट दिया, जिस पर हमने मकान बनवाया. आज तक मेरा भाई सपरिवार उसी घर में रह रहा है. हमारे घर के सामने स्वत्न्त्रता सेनानी स्वर्गवासी मेठाराम खिलनानी और गंगा खिलनानी जी का निवास था. उन्हीं की छत्रछाया में हमने देशभक्ति और देश-सेवा का पाठ पढ़ा. अमर शहीद हेमू कालाणी को हमारा शत-शत प्रणाम.