कविता

मस्त कलंदर

आज गणतंत्र दिवस पर हमारे देश के जवानों को समर्पित मेरी रचना….

” मस्त कलंदर ”

चली ठंडी हवा जब
हम घरों में दूबके सब
सर से पांव तक रजाई,कंबल ओढ़कर।
लगा सूरज पश्चिम ढलने
ठिठुरन को दूर भगाने
सुकून से बैठे हैं हम अलाव जलाकर।

भोर की उजास में
दिवाकर की उष्णता में
धूप सेंकते हाथ में चाय की प्याली लेकर।
अखबार लिए हाथ में
उलझा कर आंखें खबरों में
उष्ण करते गले को गर्मागर्म घूंट पीकर।

हिमालय की गोद में
बर्फीली हवाओं में
खड़ी जांबाज सेना सीना तानकर।
परवाह न ठंडी हवा की
न असर सघन बर्फ की
बैठी मन में देश भक्ति की आग जलाकर।

है देश सेवा की भावना
सुरक्षा की मन में कामना
खड़ी सेना बर्फ बीच रक्त में उबाल लेकर।
दुश्मन ठंडी हवा नहीं
दुश्मन बर्फबारी नहीं
दुश्मन तो पड़ोस में बैठा घात लगाकर।

मंशा ना पाए भांप
फन फैलाए बैठा सांप
पाते ही मौका डस लेगा वह विषधर।
कुचलने उसका फन
खड़े बर्फ बीच सघन
मुस्तैदी से जांबाज हमारे मस्त कलंदर।

उनके दम से ही हम
देकर खुशी,ले सारे गम
रहती चेहरे पर फिर भी मीठी मुस्कान ।
असली नायक वही देश में
फरिश्ता मानव के वेष में
आओ शीश झुकाकर उनका करें सम्मान।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]