कविता

में हूँ किसान

मैं हूँ किसान

मैं धरा पुत्र मैं हूँ किसान
माँ के आँचल से लिपटा रह
पोशित करता सारा जाहान
मैं धरा पुत्र मैं हूँ किसान |

जग छुधा बुझाता खुद भूँखा
तपता जीवन अंगारों सा
ठिठुरन में श्वेद बहाता हूँ
मैं धरा पुत्र मैं हूँ किसान |

जग सजता और सँवरता जब
श्रम कर मैं थकता मिटता तब
संघर्ष भरा जीवन मेरा
मैं धरा पुत्र मैं हूँ किसान |

यह सोंच सुबह उठ जाता हूँ
कर्मो में रत हो जाता हूँ
होगा मेरा भी भाग्य उदय –
मैं धरा पुत्र मैं हूँ किसान |

पर सोई किस्मत जगी नहीं
धरती की सेवा फली नहीं
पर माँ को बिसराऊं कैसे
मैं धरा पुत्र मैं हूँ किसान |

अब भी शोशित जग है पोशित
देकर जीवन बेमौत मरूँ
कैसा बेबस हूँ दीन हीन
मैं धरा पुत्र मैं हूँ किसान |

हे भाग्य विधाताओं सुन लो
मेरी यह मर्माहत वाणी
अब दया दिखाओ कुछ हम पे
मैं धरा पुत्र मैं हूँ किसान |
©मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’
लखनऊ ,उत्तरप्रदेष

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016