कविता

शिरीष

शिरीष

आतप वात के आघातों से
बन जाता है त्रासक वातावरण
व्याप हो जाती है झुलसन ,
सूख जाते हैं वृक्ष ,खो जाती है हरियाली
पशु – पक्षी ,जीव – जन्तु
मानव की तड़पन
तपन ही तपन
किंतु !!
ऐसे वातावरण में भी
रहता है खिला – खिला
पुष्प है शिरीष का |
हाँ ! सुमन वो शिरीष का |
रह कर अप्रभावित ,
देता है चुनौती,
लू की संहारक शक्ति को |
देता है प्रेरणा ,
विभीशिकाओ और संकटों में
हर पल प्रसन्न रहने की |
दुख: सुख से निर्पेक्ष –
अवधूत सद्रश,
सौंदर्य जन्य ,
प्रभाव परिमल ,
मौन !
किंतु ,
लोक मंगल कारी वाणी का
करता है प्रसार |
प्रतीक है आदर्श और द्रढता का |

केवल ये वस्तु श्रंगार की नहीं है
मानव के लिये ये प्रेरणा का श्रोत है |
©मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’
लखनऊ ,उत्तरप्रदेश

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016