हाँ, मैं था “विश्वामित्र”
हाँ,
मैं था “विश्वामित्र”
अपनी तपस्या में लीन
केन्द्रित अपने
लक्ष्य के लिये
कठोर हो चुका था
हृदय, मन, मस्तिष्क
और फिर
एक बार पुनः वो आयी
हाँ, वही इन्द्र की
अप्सरा “मेनका”
सर्वगुण से परिपूर्ण
सौन्दर्य की देवी
जिसने
भंग कर दिया
मेरे तप को
अपने प्रेमपाश में
बाँधकर
जन्म हुआ
कई भावनाओ का
हम जिये, कई जन्म
कुछ पलों में
एक साथ
फिर एक दिन
वो लौट गयी
इन्द्र के पास
वापस,
मुझे छोड़कर
मेरी भावनाओं को
श्रापित जीवन के लिये
जैसे शकुन्तला को
मिला था।
हाँ, मैं वही हूँ
“विश्वामित्र”
…..मानस