कविता

हाँ, मैं था “विश्वामित्र”

हाँ,
मैं था “विश्वामित्र”
अपनी तपस्या में लीन
केन्द्रित अपने
लक्ष्य के लिये
कठोर हो चुका था
हृदय, मन, मस्तिष्क
और फिर
एक बार पुनः वो आयी
हाँ, वही इन्द्र की
अप्सरा “मेनका”
सर्वगुण से परिपूर्ण
सौन्दर्य की देवी
जिसने
भंग कर दिया
मेरे तप को
अपने प्रेमपाश में
बाँधकर
जन्म हुआ
कई भावनाओ का
हम जिये, कई जन्म
कुछ पलों में
एक साथ
फिर एक दिन
वो लौट गयी
इन्द्र के पास
वापस,
मुझे छोड़कर
मेरी भावनाओं को
श्रापित जीवन के लिये
जैसे शकुन्तला को
मिला था।
हाँ, मैं वही हूँ
“विश्वामित्र”
…..मानस

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,