ग़ज़ल-२
तन्हाई किसी की मुस्तकबिल न हो
खुशियां इतनी भी मुश्किल न हो
और पाने की आशा हो
अंतिम लक्ष्य हासिल न हो
प्यार तो सच्चा हो
लेकिन उसकी मंजिल न हो
प्रेम में डूबा हो
स्नेह-सरिता का साहिल न हो
मन में समर्पण हो
महबूबा संगदिल न हो
ज्ञान का भंडार हो
पर मानव जाहिल न हो
उससे भी प्यार हो
जो उसके काबिल न हो
:- आलोक कौशिक