विज्ञान

शनि ग्रह ,भारतीय मिथक बनाम वैज्ञानिक तथ्य

शनि को भारतीय संस्कृति में बहुत अशुभ माना जाता है । अक्सर गाँवों में ही नहीं , अपितु शहरों में भी उच्च शिक्षित समाज में भी किसी व्यक्ति पर अत्यधिक दुख या विपत्ती आने पर , अक्सर यह कहते हुए सुना जाता है कि इस व्यक्ति पर ‘शनि का प्रकोप’ या ‘शनि का साती’ चढ़ गया है । इस स्थिति में उस बुरी स्थिति का तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचकर उसका निराकरण या समाधान करने के बजाय , वे लोग इस ‘कथित शनि के प्रकोप’ से बचने के लिए, बहुत ही अंधविश्वासी ,दकियानूसी विचारधारा के प्रणेता ,ठगों और धूर्तों की शरण में चले जाते हैं ,जो इस तरह के अंधविश्वासी और डरे हुए लोगों से ‘कथित शनि के प्रकोप से बचाने’ की फीस के रूप में ,वह धूर्त और ठग मोटी रकम ऐंठने में सफल हो जाता है । यह भारत में अंधविश्वास में जकड़े समाज का सबसे ज्वलंत उदाहरण है । आजकल भारत में इसी ‘ शनि फोबिया ‘ से डरे लोगों का मानसिक और आर्थिक शोषण हेतु पार्कों ,सड़कों के किनारे ,बाजारों आदि , यानि हर सार्वजनिक जगहों पर जहाँ मानव बस्ती की पहुंच है ,हर जगह ,बिल्कुल काले पत्थरों या टाइलों से आच्छादित शनि मंदिरों को बनाने की होड़ लगी हुई है ,असंख्य काले शनि मन्दिरों का निर्माण युद्धस्तर पर पाखण्डियों और धूर्तों द्वारा बनाना जारी है ।

आश्चर्य और अत्यन्त दुख की बात है कि यहाँ की सरकारें ऐसी अंधविश्ववासी,मूर्खतापूर्ण और औचित्य विहीन बातों की अनदेखी कर ,परोक्षतः, इन अंधविश्ववासी बातों की समर्थन करतीं हैं । हम देखते हैं कि इन नवनिर्मित मन्दिरों के सामने कुछ ही दिनों में खूब भीड़-भाड़ और चहल-पहल शुरू हो जाती है । इसमें सबसे दुखद आश्चर्य की बात यह देखने को मिलती है कि भारतीय समाज में मूर्ख और अंधविश्ववासी केवल अशिक्षित और सूदूर गाँवों के लोग नहीं हैं अपितु शहरों और महानगरों के अच्छे पढ़े-लिखे और ‘कथित वैचारिक रूप से परिपक्व और शिक्षित’ लोग भी ‘शनि प्रकोप फोबिया’ से डरे और ग्रसित लोग ,इन काले शनि मंदिरों के सामने फूलमाला ,रुपया-पैसा और सरसों का तेल लेकर ,पूर्ण श्रद्धा भाव से लाइन लगाकर खड़े रहते ,देखे जाते हैं ।

वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर विश्लेषण करने पर यह बात सामने आती है कि शनि ग्रह ,सौरमंडल का अपनी विशिष्ट रचना और आकार प्रकार की वजह से प्रकृति की एक सुन्दरतम् रचना है ,जो हमारे सौरमण्डल परिवार में और इस पूरे ब्रह्मांड में भी विरलतम् है । यह पृथ्वी से 1277400000 किमी. { एक अरब सत्ताइस करोड़ चौहत्तर लाख किमी. दूर स्थित है । सूर्य से दूरी के हिसाब से यह ग्रह छठा ग्रह है , आकार में यह वृहस्पति के बाद दूसरा और आयतन के हिसाब से यह पृथ्वी से 763 गुना और द्रव्यमान के हिसाब से 95 गुने से भी थोड़ा बड़ा है । शनिग्रह की पहचान इसके छल्लेयुक्त वलयाकार आकृति से है ,जो अपने 1 किमी. से भी छोटे चन्द्रमा { यहाँ आशय उपग्रह से है } और कुछ इस सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा चन्द्रमा टाइटन भी है जो आकार में इतना बड़ा है कि वह बुध ग्रह से भी बड़ा है ,से युक्त सब मिलाकर कुल 62 चन्द्रमाओं से सम्पन्न है ।

शनि ग्रह से प्रागैतिहासिक काल के मानव भी परिचित थे । बेबीलोन और यूनानी लोग भी शनि को विभिन्न नामों से पुकारते थे ,मिश्र के एक शहर अलेक्जेंड्रिया के एक खगोल शास्त्री टॉलेमी ने शनि की कक्षा का विश्लेषण किया था । प्राचीन भारतीय साहित्य में भी नवग्रहों में शनि का भी उल्लेख होता है । सन् 1666 में कोशिकाओं की खोज करने वाले रॉबर्ट हुक ने शनि के छल्लों का जिक्र किया है ,बाद में गैलिलियो , क्रिश्चियन हुग्येंस ,कोपरनिकस , योकानेस केप्लर , गियोवन्नी डोमेनिको कैसिनी आदि ने दूरबीन की मदद से इसका गहन अध्ययन किए और इसके चन्द्रमाओं { उपग्रहों } को ढूंढते गये । आधुनिक समय में अमेरिकी अतरिक्ष एजेंसी नासा ने 1979 में पायनियर-11 को शनि पर भेजा जो शनि से मात्र 20000 किमी. की दूरी से बादलों से ढके शनि का ऊपर से इसकी सतह और चन्द्रमाओं का फोटो लिया । 1980 में नासा के ही भेजे वॉयेजर-1 ने शनिग्रह, इसके छल्लों और इसके चन्द्रमाओं का स्पष्ट तस्वीरें खींचकर , पृथ्वी पर भेजा । जुलाई 2004 में नासा का कैसिनी हुग्येंस अंतरिक्ष यान ने पहली बार शनि की कक्षा में प्रवेश किया ,इसने शनि के सबसे बड़े चाँद { उपग्रह } टाइटन की बड़ी झीलों ,द्वीपों और पहाड़ियों आदि का अपने रॉडार के माध्यम से स्पष्ट तस्वीरों को खींचकर पृथ्वी पर भेजा ,यही नहीं , यह यान 14 जनवरी 2005 को टाइटन की सतह पर उतरा और यह भी महत्वपूर्ण खोज किया कि पृथ्वी से इतर अंतरिक्ष में मानव को रहने के लिए टाइटन सबसे उपयुक्त ग्रह { जगह } है ।

पृथ्वी से शनि का द्रव्यमान 95 गुना है जबकि बृहस्पति का द्रव्यमान 318 गुना है । आश्चर्यजनक रूप से शनि का आयतन पृथ्वी का 763 गुना है ,क्योंकि यह एक गैसीय महाग्रह है । एक आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि शनि और बृहस्पति दोनों मिलकर सौरमंडल के कुल ग्रहीय द्रव्यमान का 92 प्रतिशत भाग हैं , इसका मतलब सौरमंडल के केवल 8 प्रतिशत भाग में ही हमारी पृथ्वी सहित ,मंगल ,बुध ,शुक्र ,नेप्च्यून , प्लूटो और अन्य सभी छुद्र ग्रह और अन्य सभी की हिस्सेदारी है । वैज्ञानिकों के अनुसार शनि का आंतरिक ढाँचा सम्भवतः लोहा ,निकल और चट्टानों { सिलिकॉन और ऑक्सीजन यौगिक } तथा वाह्य रचना हाईड्रोजन की मोटी परत से बना हुआ है । इसके ऊपरी वायुमंडल में अमोनिया क्रिस्टल के रूप में है इसीलिए शनि का रंग हल्का पीला है । शनिग्रह पर हवा की गति , केवल नेप्च्यून से कम परन्तु फिर भी , बहुत तीव्र 1800 किमी/प्रति घंटे की स्पीड है । इसके भीतरी भाग का तापक्रम 11700 डिग्री सेंटीग्रेड तक है , आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि यह जितना सूर्य से उर्जा ग्रहण करता है , उसका ढाई गुना अंतरिक्ष में उत्सर्जित कर देता है ।

शनि के वायुमंडल में 96.3 प्रतिशत आण्विक हाइड्रोजन और 3.25 प्रतिशत हिलियम गैस और बहुत ही अल्प मात्रा में इसके वायुमंडल में अमोनिया ,एसिटिलीन, ईथेन, प्रोपेन ,मिथेन और फोनस्फाइन भी है । शनि जैसे गैस से बने ग्रहों में सबसे आकर्षण शनि के वलयों { या छल्लों } की है । यह इसके ऊपर लगभग 7000 { सात हजार } किमी. से शुरू होकर 13000000 किमी. { तेरह करोड़ किमी.} तक के फैलाव में है । यह कार्बन के साथ 93 प्रतिशत जल फॉर्म से बना है । इसका आकार अतिसूक्ष्म धूल कण से लेकर 10 मीटर बड़े पत्थर तक हैं ,जो तेजी से शनि की परिक्रमा कर रहे हैं । शनि के छल्ले बनने के बारे में वैज्ञानिकों में भी दो मत हैं , एक मत के अनुसार शनि के ये छल्ले उसके ही एक नष्ट हुए चाँद के अवशेष हैं , जो भटककर उसकी रोश सीमा में चला गया ,शनि के जबर्दस्त गुरूत्वाकर्षण शक्ति से उसका वाह्य बर्फीला हिस्सा टुकड़ेटुकड़े होकर छल्लों के रूप में बिखर गया और उसके अन्दर का भारी ,पथरीला हिसी गिरकर शनिग्रह का हिस्सा बन गया । दूसरे मतानुसार ये छल्ले उस मूल निहारिका के बचे हुए द्रव्यपदार्थ { धूलकण आदि } हैं ,जो शनिग्रह के निर्माण से रह गये ,वे ही शनि के बाहर वलय के रूप में रह गये हैं ,जो भी हो ,ये छल्ले युक्त शनि ग्रह, इस सौरमंडल का सबसे अनुपम ,अद्भुत और प्रकृति का सबसे शानदार अजूबा ,नजारा है । छल्लों के चक्र के बीच में कुछ निश्चित खाली जगह भी है ,जो शनि की परिक्रमा करने वाले चन्द्रमाओं { उपग्रहों } ने अपना रास्ता बनाकर ,छल्लों के मूलतत्वों जैसे धूल , जल के बर्फ के टुकड़े और पत्थरों को अपने परिक्रमा पथ से हटा दिए हैं ,लेकिन कुछ खाली जगहों के कारण अभी तक वैज्ञानिकों के लिए भी अबूझ पहेली बनी हुई है ।

शनि के छल्लों को शनि ग्रह से दूर होती दूरी के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने नाम निर्धारित किए हैं , जो अग्रलिखित हैं ..पहला छल्ला डी छल्ला इसकी शनि ग्रह से दूरी 66900 किमी. से 74510 किमी. की दूरी तक विस्तार है ,इसका विस्तारित क्षेत्र 4510 किमी. है ,दूसरा सी छल्ला ,यह शनिग्रह से 74658 किमी. से 92000 किमी. तक है इसका विस्तारित क्षेत्र 7242 किमी. है , तीसरा बी छल्ला ,यह मुख्य ग्रह से 92000 किमी. से 11780 किमी. तक फैला है ,इसका विस्तारित क्षेत्र 25580 किमी. है इसे ही शनिग्रह का मुख्य छल्ला माना जाता है ,यह काफी घना भी है ,चौथा कैसीनी दरार है ,जो 117580 किमी. से 122170 किमी.तक फैला है इसका विस्तारित क्षेत्र 4590 किमी. है । यह दरार ए और बी छल्लों के बीच में है ,जो पृथ्वी से शक्तिशाली दूरबीनों की मदद से स्पष्ट दिखाई देता है ,पाँचवा ए छल्ला है ,यह 122170 किमी. से 136775 किमी.तक फैला है, इसका विस्तारित क्षेत्र 14605 किमी. है , यह भी शनि के मुख्य छल्ले के तौर पर समझा जाता है ,छठा रोश दरार है ,जो 136775 किमी. से 139380 किमी. तक सिर्फ 2605 किमी. विस्तारित है , सातवाँ एफ छल्ला है यह 140180 किमी. से शुरू होकर मात्र 30 किमी. से 500 किमी. तक ही विस्तारित है ।

आठँवा जैनस एपिमीथयस छल्ला , यह 149000 से 154000 किमी.तक 5000 किमी.तक विस्तारित , इसी छल्ले के अन्दर जैनस और एपिमीथयस नामक दो उपग्रह शनि की परिक्रमा करते हैं , नौवाँ जी छल्ला , यह 166000 किमी. से 175000 किमी.तक 9000 किमी. तक विस्तारित है , दसवां मिथोनी छल्ला खण्ड यह 194230 किमी. पर अवस्थित है ,इसमें मिथोनी उपग्रह परिक्रमा करता है । यह एक धूलभरा छल्ला है ,वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष से क्षुद्र ग्रहों के मिथोनी पर टकराने से निकली धूल ही इसका कारण है ,ग्यारहवाँ ऐन्थी छल्ला खण्ड ,इसमें ऐन्थी उपग्रह परिक्रमा करता है , बारहवाँ पलीनी छल्ला खण्ड ,यह 211000 किमी. से 213500 किमी.तक 2500 किमी.फैला है , तेरहवां ई छल्ला ,यह 280000 किमी. से 480000 किमी. तक 200000 किमी. तक के विस्तार में फैला है , यह सबसे बाहरी छल्ला है और बहुत ही चौड़ा है और चौदहवें छल्ले का नाम फीवी छल्ला है ,जो 4000000 किमी. से 13000000 किमी. तक फैला है ,इसे 2009 में पहली बार नजदीक से देखा गया ,इसमें फीवी नामक उपग्रह परिक्रमा करता है ,यह बहुत ही कमजोर छल्ला है ,जिसमें बहुत ही हल्की हल्की धूल मौजूद है । अगर शनि के छल्लों को नजदीक से देखा जाय तो उसमें और भी उपछल्ले और उपदरारें नजर आएंगी । शनि अपने छल्लों जैसी विशिष्ठ, अद्भुत और सुन्दर ग्रहीय रचना से युक्त सौरमण्डल और ज्ञात ब्रह्मांड का सुन्दरतम् ग्रह है ।

वैज्ञानिकों के अनुसार शनिग्रह का उपग्रह मण्डल बहुत ही इकतरफा है ,एक ही तरफ उपग्रहों की भीड़भाड़ है ,जबकि दूसरी तरफ एकदम सन्नाटा है । सबसे बड़ी विशेषता शनि के उपग्रह टाइटन को लेकर है ,वैज्ञानिकों के अनुसार ,यहाँ का वातावरण बिल्कुल हमारी पृथ्वी जैसा नाइट्रोजन से युक्त है ,टाइटन के दक्षिणी ध्रुव की सतह के नीचे पानी के एक बहुत बड़े जलाशय होने का अनुमान है । टाइटन के बारे में एक आश्चर्यजनक जनक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि शनि के इस सबसे बड़े चाँद का द्रव्यमान , उसके सारे उपग्रहों और उसके वलय की कुल द्रव्यमान का 96 प्रतिशत , 6 गोल चन्द्रमाओं में 3.96 प्रतिशत और बाकी 55 चन्द्रमाओं और कुल छल्लों { वलयों } में सब मिलाकर कुल द्रव्यमान केवल 0.04 प्रतिशत ही है ।

वैज्ञानिकों के अनुसार , शनि के सन् 2010 तक कुल 62 चन्द्रमाओं की खोज हो चुकी है ,इनमें से 53 का नामकरण भी किया जा चुका है , ,जिनकी कक्षाएँ भी ज्ञात हो चुकीं हैं । इन छोटे-बड़े 62 चन्द्रमाओं में केवल 13 चन्द्रमा ऐसे हैं जिनका व्यास 50 किमी. से ज्यादे है ,इनमें भी केवल 7 चाँद इतने बड़े हैं जो अपने स्वयं के गुरूत्वाकर्षण शक्ति की वजह से खुद को गोल कर लिए हैं । शनि के सात छोटे से बड़े चन्द्रमाओं का क्रमबद्ध संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है- {1} माइमस- इसका व्यास मात्र 396 किमी. है , खगोलीय वस्तुओं में माइमस सबसे छोटी ज्ञात खगोलीय वस्तु है ,जो अपने गुरूत्वाकर्षण बल से स्वयं को गोल कर चुकी है ।
{ 2 } एनसलअडस- इसका व्यास 400 किमी. है । वैज्ञानिकों के अनुसार इस उपग्रह पर प्रारंभिक जीवन को पैदा करने वाले सारे तत्व जैसे तरलपानी ,गर्मी और कॉर्बन सामग्री सब कुछ उपलब्ध है । अमेरिकी वैज्ञानिकों के अनुसार इस उपग्रह की ऊपरी सतह मोटी बर्फ से ढकी है जिसकी दरारों से ज्वालामुखी जैसे पानी के सोते कई- कई सौ किमी. की ऊँचाई तक पानी और बर्फ के फव्वारे उठते रहते हैं । इसकी ऊपरी सतह -200 डिग्री सेंटीग्रेड ठंडा है ,परन्तु बर्फ की दरारों में -70 डिग्री सेंटीग्रेड ही तापमान है । वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा सम्भव है कि यहाँ बर्फ की मोटी चादर के नीचे तरल पानी का महासागर हो ,जो इन फव्वारों को गर्म पानी देता हो , यहाँ सम्भवतया जीवन का प्रारम्भिक चरण की शुरूआत हो गई हो ।
{ 3 } टथिस- इसका व्यास 1066 किमी. है । यह लगभग पूरा उपग्रह ही बर्फ और पानी से बना है मुश्किल से इसका 6 प्रतिशत भाग पथरीला है शेष पानी और बर्फ है । इसका तापमान -187 डिग्री सेंटीग्रेड है ,इस पर 3 किमी. गहरी ,100 किमी. चौड़ी और 2000 किमी.तक लम्बी एक घाटी है ,जिसका नामकरण ‘इथाका’ घाटी रखा गया है ।
{ 4 } डायोनी- इसका व्यास 1122 किमी. है । इस उपग्रह का 46 प्रतिशत भाग पथरीला और शेष 54 प्रतिशत भाग बर्फ या पानी से निर्मित है ।
{ 5 } आएपिटस-इसका क्षेत्रफल 1470 किमी. है इसकी खोज 1671 में इटली के खगोलशास्त्री जिओवान्नी डोमेनिको कैसिनी ने की थी । इस उपग्रह की विशेषता इसके एक भाग का रंग बहुत हल्का और दूसरे भाग का रंग आश्चर्यजनकरूप से बहुत गाढ़ा होना है । इसका मात्र 20 प्रतिशत भाग चट्टानी और शेष 80 प्रतिशत भाग पानी या बर्फ होने की वजह से इसका घनत्व बहुत कम है ।
{ 6 } रिया- इसका व्यास 1528 किमी. है । इसे भी इटैलियन खगोलशास्त्री जियोवान्नी डोमेनिको कैसीनी ने ही 1672 में ढूंढा था । इसका वायुमण्डल ऑक्सीजन और कॉर्बनडॉइऑक्साइड से युक्त बहुत ही विरल है ।
{ 7 } टाइटन- इसका व्यास 5150 किमी. है ,यह हमारे चाँद से और बुध ग्रह से भी बड़ा उपग्रह है । इसका वातावरण पृथ्वी से बहुत मिलताजुलता है । हमारी पृथ्वी और टाइटन में बहुत कुछ समानताएं हैं, मसलन यहाँ भी ज्वालामुखी जैसी क्रियाएं होतीं रहतीं हैं ,यह उपग्रह भी गहरी खाइयों , नदियों के पाट , उनके मुहाने और छोटेछोटे पहाड़ियों से सम्पन्न है । अन्तर यही है कि यहाँ की नदियों म़े पानी की जगह तरल मिथेन बहता है । यहाँ का तापमान -180 डिग्री सेंटीग्रेड है । इसके वायुमंडल में 98.4 प्रतिशत नाइट्रोजन और 1.6 प्रतिशत में अन्य बहुत सी गैसे हैं ,जिनमें मिथेन सर्वाधिक है ।

इस प्रकार हम देखते हैं कि शनिग्रह सौरमण्डल का एक बहुत ही सुन्दरतम् ,अद्भुत और अप्रतिम ग्रह है ,जो अपनी अद्भुत वलयों और अपने छोटे-बड़े 62 चन्द्रमाओं के भरे-पूरे परिवार के साथ सौरमण्डल में विराजमान है ।

-निर्मल कुमार शर्मा ,गाजियाबाद ,30-1-19

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]