भेड़िये… सिर्फ जंगलों में ही नहीं होते ।।
भेड़िये… सिर्फ जंगलों में ही नहीं होते ।।
कहीं पहने हुए,
इन्सान की खाल ।
और कहीं..
ओड़ इन्सानियत का नकाब
दिख जाते हैं, सब तरफ भेड़िये ।
भेड़िये… सिर्फ जंगलों में ही नहीं होते ।।
कभी अजनबी,
तो कभी बन रिश्तेदार।
कभी सीधे,
तो कभी करें छिप कर प्रहार ।
भेड़िये… सिर्फ जंगलों में ही नहीं होते ।।
मौका मिलते ही करें वार,
कहीं नोचें मांस,
दिखा के प्यार ।
कहीं मारते हैं तिल-तिल करके
कहीं…
एक बार में ही करें काम-तमाम ।
भेड़िये… सिर्फ जंगलों में ही नहीं होते ।।
अंजु गुप्ता