जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वर्मिंग, राजहंस के बच्चों पर भारी
इस पृथ्वी पर मनुष्यों द्वारा किए कृत्यों की सजा इस पर रहने वाले सभी पशु पक्षी भुगतने को अभिषापित हो रहे हैं । दक्षिण अफ्रीका से एक बहुत ही दुखद समाचार आ रहा है , वहाँ के एक जलाशय में राजहंस लाखों सालों से अपना बसेरा बनाकर रहते आए हैं । वहाँ वे इन्हीं दिनों में प्रजनन करते हैं, क्योंकि दक्षिण अफ्रीका दक्षिणी गोलार्ध में स्थित होने के कारण आजकल वहाँ ग्रीष्म ऋतु है, जो राजहंसों के प्रजनन के लिए यह सबसे उत्तम समय है ,परन्तु दुर्भाग्यवश इस साल सम्भवतः वहां हुई कम बारिश से या अत्यधिक गर्मी पड़ने की वजह से राजहंसों के आश्रयस्थल वाला वह जलाशय अचानक पहली बार इसी समय सूख गया है ,जिससे राजहंसों के अंंडों को जो नम वातावरण चाहिए , वह नहीं मिलने से उन अंडों के बाहरी कवच सूखकर कड़े हो गये हैं ,जिससे उन अंडों से चूजे नहीं निकल पा रहे हैं ,फलस्वरूप सैकड़ों राजहंसों के चूजे मर रहे हैं ।
इस दुखद घटना की सूचना पर बहुत से देशों के पर्यावरण संरक्षणवादी और जीवजन्तुओं के प्रति प्रेम और ममत्व रखने वाले लोग और संस्थाएं, वहाँ से उनके सैकड़ों अंडों और चूजों को किसी अन्यत्र उनके अनुकूल जलाशयों में हवाई जहाजों से स्थानांतरित करने का कार्य त्वरित गति से कर रहे हैं ,ताकि उनमें से कुछ के जीवन को बचाया जा सके । ये सभी लोग साधुवाद के पात्र हैं ,परन्तु मूल प्रश्न यह है कि मानव द्वारा अपने कथित विकास हेतु औद्योगिकीकरण और विभिन्न तरह के प्रदूषण से यह पृथ्वी गलोबल वार्मिंग से अभिषापित होकर जलवायु परिवर्तन की शिकार होकर कहीं अतिवृष्टि ,कहीं सूखा ,कहीं बेमौसम ठंड आदि समस्याओं से ग्रस्त होकर रह गई है इसका ऋतु परिवर्तन चक्र भी असंतुलित हो गया है , दक्षिण अफ्रीका वाली यह दुखद घटना इसी का कुफल है । समस्त मानव जाति को सुधरना ही इसका विकल्प है, अन्यथा भविष्य में प्रकृति और भी गंभीर किस्म की विध्वंस कर सकती है।
— निर्मल कुमार शर्मा , गाजियाबाद , 3-2-19