उड़ी बाबा!
प्रयागराज के कुंभ पर्व पर न जा सकने के कारण हमने गुजरात के आणंद जिले के धर्मज गांव की सैर का ही कार्यक्रम बना लिया था. धर्मज गांव जिसका नाम हो, उसमें धर्म नाम का शायद कोई संकेत मिल जाए, गांव है तो क्या हुआ? धूल भरे रास्ते, बैल या घोड़ा गाड़ी, कच्चे-पक्के मकान और दूर तक नजर आते खेतों की तस्वीर दिमाग में लिए हम चल ही तो पड़े.
पर यह क्या? धूल भरे रास्ते, बैल या घोड़ा गाड़ी, कच्चे-पक्के मकान और दूर तक नजर आते खेतों का कोई नामोनिशान नहीं! पक्के और साफ सुथरे रास्ते, उन पर दौड़ती मर्सिडीज या बीएमडब्लू जैसी महंगी गाड़ियां और गांव के चौक-चौराहों पर मैक्डॉनल्ड जैसे रेस्टॉरेंट! यह संपन्नता तमाम जगह बिखरी हुई यानी गांव के लोग शहरी और ग्रामीण दोनों परिवेश की जिंदगी जीते हैं. अब हमने वहां के सरपंच जी से तो बात करनी ही थी!
”गांव नाम होते हुए भी यहां गांव जैसा कोई माहौल दिख नहीं रहा, इसका कारण बताएंगे?” हमारी पहली जिज्ञासा थी.
”धर्मज गांव को एनआरआई का गांव भी कहा जाता है, जहां हर घर से एक व्यक्ति विदेश में काम-धंधा करता है. यहां लगभग हर परिवार में एक भाई गांव में रहकर खेती करता है, तो दूसरा भाई विदेश में जाकर पैसे कमाता है. ऐसा कहा जाता है की हर देश में आपको धर्मज का व्यक्ति जरूर मिलेगा. देश का यह शायद पहला गांव होगा जिसके इतिहास, वर्तमान और भूगोल को व्यक्त करती कॉफी टेबलबुक प्रकाशित हुई है.” सरपंच जी का कहना था.
”यह तो बहुत ही अचरज की बात है!” हमारा हैरान होना स्वाभाविक था.
”इस गांव की खुद की वेबसाइट भी है तो गांव का अपना गीत भी है. ब्रिटेन में हमारे गांव के कम से कम 1500 परिवार, कनाडा में 200 अमेरिका में 300 से ज्यादा परिवार रहते हैं. इसका हिसाब-किताब रखने के लिए बाकायदा एक डायरेक्टरी भी बनाई गई है, जिसमें कौन कब जाकर विदेश बसा उसका पूरा लेखा जोखा है.” हमें जानकारी मिली.
”गांव की संपन्नता का आलम इसी से लगाया जा सकता है कि यहां दर्जनभर से ज्यादा प्राइवेट और सरकारी बैंक हैं, जिनमें ग्रामीणों के नाम ही एक हजार करोड़ से ज्यादा रकम जमा है. गांव में मैक्डॉनल्ड जैसे पिज्जा पार्लर भी हैं तो और भी कई बड़े नामी रेस्टॉरेंट की फ्रेंचाइजी भी हैं. इसके अलावा आयुर्वेदिक अस्पताल से लेकर सुपर स्पेशिलिटी वाले हॉस्प्टिल भी हैं.” इस गांव की गौरवगाथा बयान करती है.
”गांव वाले हर साल 12 जनवरी को धर्मज डे सेलिब्रेट करते हैं, जिसमें शामिल होने के लिए दुनिया के कोने-कोने में बसे गांव के एनआरआई पूरे परिवार के साथ यहां आते हैं. वो महीनों तक यहां रहते हैं और मौज-मस्ती करते हैं, अपने बच्चों को गांव की संस्कृति से रूबरू कराते हैं.” हमारी हैरानी का आलम भी बढ़ता जा रहा था.
”भारत के आम गांवों की तरह यहां चौराहों पर खेती किसानी की चर्चा कम ही होती है, बल्कि इंटरनैशनल पॉलिटिक्स को लेकर लोग बड़े चाव से चर्चा करते हैं. डॉलर के बढ़ते दाम, भारत-अमेरिका पॉलिसी, डॉनल्ड ट्रंप की विदेश नीति और अमेरिका, कनाडा के वीजा कानून यहां अक्सर चर्चा में रहते हैं.” हमारी जानकारी में इजाफा हो रहा था.
”धर्मज गांव की सबसे बड़ी खासियत क्या है?” हमारा यह पूछना अवश्यम्भावी था.
”धर्मज गांव की सबसे बड़ी खासियत है उसकी संपन्नता और इसमें भी सबसे बड़ी बात है, कि यह बिना किसी सरकारी मदद के है. विदेश में बसे धर्मज के लोग अपने गांव के विकास के लिए जी भरकर पैसे भेजते हैं. इसका असर गांव के माहौल पर भी दिखता है. गांव की अधिकतर सड़कें और गलियां पक्की हैं. कुछ चौराहों को देखकर तो आप अंदाजा ही नहीं लगा सकते, कि यह किसी गांव का नजारा है या किसी शहर का. कुछ चौराहों को तो बिल्कुल विदेशी शहरों की तरह लुक दिया गया है.”
”उड़ी बाबा!” हमारे मुंहं से अकस्मात निकल गया था.
गुजरात के आणंद जिले के धर्मज गांव की सबसे बड़ी खासियत है उसकी संपन्नता और इसमें भी सबसे बड़ी बात है, कि यह बिना किसी सरकारी मदद के है. विदेश में बसे धर्मज के लोग अपने गांव के विकास के लिए जी भरकर पैसे भेजते हैं. विकास की संकल्पना और विकास करना, दो अलग-अलग बातें हैं. धर्मज गांव में ये दोनों बातें हैं और विकास के लिए धन उपलब्ध कराते हैं विदेश में रहने वाले, जो साल में एक बार आकर यहां बच्चों को भारतीय सभ्यता-संस्कृति की विरासत देते हैं. गांव वाले हर साल 12 जनवरी को धर्मज डे सेलिब्रेट करते हैं, 12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन! इसी दिन को युवा दिवस भी मनाया जाता है.