दिलखुश जुगलबंदी-5
जीने का मज़ा आया
खुशियां कम और अरमान बहुत हैं,
जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत है,
करीब से देखा तो है रेत का घर,
दूर से मगर उनकी शान बहुत है,
कहते हैं सच का कोई सानी नहीं,
आज तो झूठ की आन-बान बहुत है.
मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी,
यूं तो कहने को इंसान बहुत है,
तुम शौक से चलो राहे-वफा लेकिन,
ज़रा संभल के चलना तूफान बहुत हैं.
वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात,
वैसे तो शहर में अपनी पहचान बहुत है,
पहचान वही जो पहचानी जाए
जो पहचानी न जाए वह पहचान ही क्या
बेशक झूठ की आन बान बहुत है
पर सच्चे की गाथा इतिहास में दर्ज़ होती है
देखो कितना झूठा है, इससे रहो दूर
सच के साथ रहो, उस पर चमकता है नूर
खुशियां तो बहुत हैं मगर
दूसरे की थोड़ी ख़ुशी देखकर
ख़ुद की ख़ुशी होती है काफूर
जल-जल के भुन रहे हैं
ईर्ष्या में होम हो रहे हैं
जलन की आग के तूफ़ान जब
इंसां ने ख़ुद ही पैदा किए हैं
तो उसमें जल कर उड़ जाना ही
उनकी किस्मत में लिखा है
जिस दिन दूसरे की ख़ुशी देखकर
अपने कलेजे में ख़ुशी की ठंडक होगी
उस दिन दुनिया में जन्नत होगी.
दूसरे की ख़ुशी देखकर
ख़ुशी की ठंडक महसूस करना ही जन्नत है
जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है
पर जो रिश्ते हैं उनमें जीवन होना ही जन्नत है
सहारे कितने भी अच्छे हों,
साथ छोड़ ही जाते हैं
खुद में काबिलियत पर भरोसा करना ही जन्नत है.
रिश्ते बनते ही
सादगी से हैं
जो स्वार्थ से बनें
वो जीते ही कब हैं.
हे स्वार्थ तेरा शुक्रिया,
एक तू ही है,
जिसने लोगों को आपस में जोड़कर रखा है
भले ही लोग मन में जल-भुन रहे हों
पर तेरे कारण मन में बसा तो रखा है
जिस दिन तेरा वजूद खत्म हो जाएगा
परमार्थ चैन से सांस ले पाएगा
आदमी जीते जी जन्नत का मजा ले पाएगा
हमने तो यही मन में सोच रखा है.
आपकी सोच के पीछे की
सोच को सलाम
खूबसूरत दिया है
आपने यह पैग़ाम
वह दिन दूर नहीं
जब आपके जज़्बात
पर होगा
सबको यकीं.
रास्ता भी मुश्किल है
मंज़िल भी दूर है
मगर ऐ राही
तू अकेला न महसूस कर
यकीं अपने साए पर कर
ज़िन्दगी की
कड़कती धूप में
तू प्यासा होगा
पानी मांगेगा
पर तेरा साया
ज़िन्दगी के
हर मौसम में
चुपचाप रहकर
तेरा साथ देगा
तू भी बन
अपने साए का साया
फिर देखेगा
ज़िन्दगी में तुझे
जीने का मज़ा आया.
फेसबुक पर सुदर्शन खन्ना और लीला तिवानी की काव्यमय चैट पर आधारित दिलखुश जुगलबंदी
बारात में गानों की धुन पर अक्सर सबकी मस्त ‘जुगलबंदी होती है, लेकिन यह दिलखुश करने वाली दिलखुश जुगलबंदी न जाने कैसे शुरु हुई और कैसे आगे बढ़ रही है, पर इसका सृजन होते समय भी दिल खुश हो जाता है और बाद में आश्चर्यमिश्रित हर्ष होता है, कि दिलखुश करने वाली दिलखुश जुगलबंदी का सृजन हुआ तो कब और किस मूड में!