पर्यावरण

अगर गंगा विलुप्त हो गयी तो?

आज के सभी समाचार पत्रों में उत्तर भारत की हिमालय से निकलने वाली सभी नदियों के उद्गम स्थल , स्थित ग्लेशियरों के ग्लोबल वार्मिंग की वजह से तेजी से पिघलने और सन् 2100 तक उनके दो तिहाई भाग तक समाप्त हो जाने तथा उत्तर भारत की सभी नदियों के अस्तित्व पर मंडरा रहे गंभीर संकट का समाचार प्रमुखता से प्रकाशित हुआ है । कितने दुख ,ग्लानि ,विक्षोभ और विडम्बना है कि जिन नदियों के किनारे , जिनकी बदौलत मानव सभ्यता फली-फूली और विकसित हुई ,जिन नदियों के उपजाऊ मैदानों में , जिनके पानी से सिंचिंत खेत से मानव जीवन की सबसे बड़ी जीवन की आवश्यकता ‘भूख की समस्या’ को, अपने प्रचुर मात्रा में अन्न उपजा कर देने वाली , अपने अक्ष्क्षुण और निरंतर जल प्रवाह से प्राचीन काल से ही मानव के व्यापार में अपना अमूल्य योगदान देने वाली ,अपने अमृततुल्य मीठे जल से मानव सहित समस्त जीवजगत की प्यास बुझाने वाली और इस प्रकृति की सबसे अद्भुत रचना रंगबिरंगी मछलियों सहित लाखों जलचरों की आश्रय स्थल रहीं , हमारी मातृतुल्य नदियों को अब दम घोंटने और प्राण लेने के लिए वही मानव अब आमादा है ,जिनका लाखों वर्षों से जिन नदियों ने अपनी गोदी में खिलाया, पिलाया और पुत्रवत् पाला ।
भारत के सिरमौर कहे जाने वाले हिमालय से निकलने वाली समस्त नदियों पर जिनमें वे नदियां जो सीधे भारत की भूमि पर दक्षिण दिशा में आ जाती हैं , जैसे गंगा ,सिंधु ,यमुना ,घाघरा आदि और वे भी जो हिमालय से उत्तर तरफ से उतर कर पूरब से होते हुए पुनः भारत भूमि में प्रवेश कर जातीं हैं जैसे यांगत्सी ,मीकांग और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के उद्गम श्रोत हिमालय के शिखरों पर लाखों-करोड़ों साल से बर्फिले ग्लेशियरों पर मानव द्वारा उत्पन्न प्रदूषण और अन्य विषाक्त गैसों के भयंकर उत्सर्जन से वैश्विक तौर पर इस समूची पृथ्वी के तापक्रम के उत्तरोत्तर बढ़ने से इन बर्फिले गलेशियरों के अस्तित्व पर भयंकर संकट मंडरा रहा है ।
एक अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों के संगठन ‘ इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट ‘ के 210 वैज्ञानिकों और 350 शोधकर्ताओं ने ‘हिन्दूकुश हिमालय एसेसमेंट’ नामक अध्ययन के तहत हिमालय के तेजी से पिघलते ग्लेशियरों का पिछले पाँच वर्षों तक गहन अध्ययन किया । उनके अध्ययन के अनुसार अगर मानव द्वारा प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन की गति यही बनी रही तो भी दुनिया के तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस ही बढ़ती रहने से भी सन् 2100 तक इन ग्लेशियरों के एक तिहाई गलेशियर पिघल जाएंगे और अगर यह तापमान बढ़कर 2 डिग्री सेल्सियस हो गया तब इनका दो तिहाई हिस्सा सदा के लिए पिघल जायेगा ।
गंगा सहित और हिमालय से निकलने वाली सभी नदियों के उद्गम श्रोत सूख जाने के बाद वाली उस भयावह स्थिति की कल्पना मात्र से ही मनमस्तिष्क सिहर उठता है , इन सभी नदियों के सूखने पर पूरे उत्तर भारत में भयंकर सूखे से अन्न उत्पादन लगभग बिल्कुल शून्य हो जायेगा , क्योंकि भूगर्भीय जल की मुख्य श्रोत भी उत्तर भारत में फैली इन छोटीबड़ी नदी नालों के निरंतर जल प्रवाह से ही रिचार्ज होता रहता है । हैंडपंप ,कुँएं ,ट्यूबवेल आदि सभी फेल हो जाएंगे , पेड़ पौधों , बागबगीचों ,जंगलों के सूखने से लाखों तरह के पशुपक्षी भी अकाल कलवित हो जायेंगे , सबसे बड़ी बात मानव के पेय जल की होगी । केरल के बाद सबसे घनी आबादी वाले उत्तर भारत के करोड़ों लोगों के सामने पानी के अभाव में अकाल और दुर्भिक्ष की विकट समस्या उत्पन्न हो सकती है ।
कथित विकास और सड़क चौड़ीकरण के नाम पर नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी को छेड़ना भारत ,पाकिस्तान , नेपाल ,बाँग्ला देश को मिलाकर लगभग दो अरब जनता के लिए बहुत ही त्रासद स्थिति होगी । इसलिए हम भारत के लोगों की यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी इन जीवन दायिनी समस्त नदियों के उद्गम श्रोत { लाखों सालों से बर्फ से जमें ग्लेशियरों } को हर हालत में बचाना ही चाहिए । पृथ्वी को और अधिक गर्म होने से बचाने के लिए वह हर प्रयत्न करना चाहिए ,जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है ।

-निर्मल कुमार शर्मा ,गाजियाबाद ,7-2-19

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]