पर्यावरण

यमुना और भारत की नदियों का क्या होगा ?

हमें स्कूल और कॉलेजों में इतिहास में पढ़ाया गया है कि भारत में मानव सभ्यता का विस्तार नदियों के किनारे-किनारे ही हुआ ,क्योंकि केवल नदियाँ ही , मनुष्य के जीवन के सभी सुख-साधन और जरूरतें पूरी कर देतीं हैं ,मसलन पीने के लिए शुद्ध जल , उनके जल से सिंचाई करके अन्न के प्रचुर उत्पादन करके , भोजन जैसी मनुष्य की मूलभूत समस्या का भी समाधान हो जाता है , ये वैज्ञानिक तथ्य है कि जल यातायात अभी भी यातायात के तीनों साधनों यथा सड़क , रेल और वायु यातायात ,तीनों से बहुत सस्ता पड़ता है । इसलिए हमारे पूर्वज लोग नदियों से प्राप्त इन सुविधाओं को ध्यान रखते हुए नदियों के किनारे ही अपने ठिकाने गाँव ,कस्बे ,शहर बसाए जो बाद में आधुनिक महानगरों में बदल गये हैं । अभी भी हम अपने मध्य भारत के शहरों को दृष्टिपात करते हैं ,तो देखते हैं कि { समुद्रों के किनारे के शहरों को छोड़ दें } प्रायः भारत के सभी शहर किसी न किसी नदी के किनारे बसे हुए हैं ।
आज हम इक्कीसवीं सदी में उन्हीं अपनी माँ सरीखी और जीवनदायिनी नदियों को बेमौत मारने के लिए कटिबद्ध हैं ,कमर कसे हैं । मनुष्य अपने को इस भूमण्डल का सबसे बुद्धिमान प्राणी समझने की गलतफहमी पाले बैठा है , लेकिन आज मानव के कुकृत्य एक अदने , भोले से वन्य प्राणी से भी कम समझदारी दिखा रहा है । एक बहुत ही सीधा सा प्रश्न है कि समस्त भारत के शहरों के सीवेज सिस्टम { मतलब मल,मूत्र , रासायनिक और कीटनाशक कचरे आदि सभी } को ढोने वाली नदियाँ ,अब तो वे बिल्कुल बड़े नाले में तब्दील हों गईं हैं , मान लिजिए ये नाले स्वरूप नदियाँ भी बीस पच्चीस सालों में सूख जायें { पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार अगर यही स्थिति रही तो 2050 तक गंगा जैसी बड़ी नदी सूख सकती है ,छोटी नदियों की बात ही छोड़िए } ,उस स्थिति में क्या होगा ? आश्चर्य और बहुत बहुत अफ़सोस , यह हम आधुनिक कथित सबसे बुद्धिमान होने का भ्रम पाले मनुष्य नहीं सोच पा रहे !
इस स्थिति मे सबसे पहले उत्तर भारत और गंगा बेसिन के सारे प्राकृतिक भूगर्भीय जलश्रोत जैसे कुँए , तालाब , बोर वेल ,हैंडपंप आदि सभी से पानी आना बन्द हो जायेगा ,सभी सूख जायेंगे , क्योंकि सतत बहने वाली नदियों से ही हमारे भूगर्भीय श्रोत भी रिचार्ज होते रहते हैं । उस समय आज की लापरवाही भयंकरतम् जलत्रासदी और सूखे की सबब बन जायेगी , सूखे के अभाव में अन्न ,फल ,सब्जी आदि सभी बिल्कुल चौपट हो जायेंगे ,इनका उत्पादन शून्य हो जायेगा ।
यमुना की सफाई हेतु आबंटित साढ़े छः हजार करोड़ रूपये { मतलब 65000000000 रूपये , पैसठ अरब रूपये } राजनैतिक , प्रशासनिक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया , आज से ठीक अठारह साल पूर्व 2001 के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के कि ‘अगले दो साल में यमुना को उसके मूल स्वरूप में पहुँचा दिया जाये ,ताकि उसे “मैली नदी” नदी के रूप में नहीं जाना चाहिए ‘ की धज्जियां उड़ाते हुए ,दिल्ली के कर्णधार अभी भी अपने 17 नालों से अभी भी करोड़ों-अरबों लीटर गंदा पानी , एक लाख औद्योगिक ईकाईयां अपने 7.15 करोड़ बिषाक्त व केमिकल युक्त पानी और प्रतिवर्ष 1.31 लाख टन प्लास्टिक कचरा प्रतिवर्ष बेहिचक डालकर ‘2001 की यमुना’ को 2019 में पाँच गुना और गंदा कर यमुना को एक सड़े ,बजबजाते नाले में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं । इस तरह यमुना अनन्त काल तक कभी साफ नहीं होगी ! धीरे-धीरे यह नदी मर रही है ,नदी तो कब की मर चुकी है ! यमुना के नाम पर जो बह रहा है , वह तो दिल्ली वासियों की गंदगी से बजबजाता ‘एक बड़ा नाला’ मात्र है , यमुना तो आज से तीसियोंयों साल पहले ही मर चुकी है !

-निर्मल कुमार शर्मा ,गाजियाबाद ,31-1-19

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]