लघुकथा

आशीर्वाद

यथा नियम मैं प्रातःकाल की सैर कर रही थी. प्रातःकाल की इस सैर का अलग ही लुत्फ़ होता है. हो भी क्यों न! पूरी रात की नींद के बाद सब थकान से रहित ताजातरीन होते हैं. हवा भी ताजा! यही ताजी हवा खाने हम सैर पर जाते हैं. पंछी-सुमन-गगन-धरा सब पर ताजगी के छींटे होते हैं, जिन्हें हम ओस के नाम से जानते हैं. पूरी रात मौन रहने के कारण सब बतियाने की मौज में होते हैं. यही मौज आज धरती माता के मन को मगन किए हुए थी.
”आप चलते हुए कदम-कदम पर मुझे धन्यवाद क्यों कह रही हैं?” चहुं ओर देखा, कोई नहीं था. पर आवाज तो आई थी! ऊपर देखा, कोई नहीं दिखाई दिया.
”नीचे देखो, मैं बोल रही हूं, आपकी धरती माता!” अब तो संदेह की तनिक भी गुंजाइश नहीं थी.
”सादर प्रणाम धरती माता, आप मुझे तुम कहिए न! तुम में माता का जो अपनापन होता है, उसका कोई जवाब नहीं!” मैंने सादर अभिवादन करते हुए कहा.
”मेरे प्रश्न का जवाब तो दो बेटी.” मां ने फिर कहा.
”आप खुद सब जानती हैं. हम आपके ऊपर धम-धम करते चलें या खरामा-खरामा, आप धैर्यपूर्वक सब सहती जाती हैं, न गिला न शिकवा, न कोई शिकायत. इसलिए चलते हुए कदम-कदम पर मन से अपने आप धन्यवाद निकलता ही चला जाता है.” धरती माता मुस्कुराती हुई-सी लगी.
”आप पर कोई कचरा डाले या पानी, दाना डाले या सानी, आप सहनशीलता की साक्षात प्रतिमा बनी रहती हैं.” धरती माता अब भी सहनशीलता से सुन रही थीं.
”आप कीचड़ से पानी अलग कर अपने अंदर समा लेती हैं, बाकी मिट्टी को अपना हिस्सा बना लेती हैं. कूड़े-कचरे से आपको कोई घिन नहीं आती, उससे आप खाद बना लेती हैं, हम न तो पॉलिथीन का उपयोग बंद करते हैं, न उसका सही ढंग से निपटारा करते हैं, आप फिर भी उससे निपटने की भरसक कोशिश करती हैं, वह भी मूक रहकर. शिकायत करना आपकी फ़ितरत में ही नहीं है.” धरती माता मौन होकर सुन रही थीं.
”हर तरह के पानी को आप अपने अंदर जज़्ब करके, खनिज आदि मिलाकर साफ करके फिर हमें ही दुबारा उपयोग करने के लिए प्रदान करती हैं, धन्य है आपकी दानशीलता! हम इतने निःस्पृह क्यों नहीं रह पाते!” धरती माता क्या जवाब देतीं!
”हम कुछ सीख नहीं सकते, तो आपको धन्यवाद तो दे ही सकते हैं. शायद आपको कदम-कदम पर मन से आपका धन्यवाद करना और सराहना करना ही हमारे अंदर किसी एक सद्गुण का अंश मात्र आने की वजह बन जाए!” धरती माता का मुस्कुराना जारी था, शायद यही एक मां का आशीर्वाद था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “आशीर्वाद

  • लीला तिवानी

    मानव अपने स्वार्थ के कारण जानते हुए भी अनजान बनकर अनेक ऐसे काम करता है, कि धरती माता को कष्ट पहुंचता है. माता होने के कारण धरती धैर्य धारती चली जाती है. बीच-बीच में हमें सुधरने के संकेत भी देती चलती है, लेकिन हम उसके संकेतों को न समझ्कर अपनी मनमानी जारी रखते हैं, परिणाम सूनामी जैसे भयानक मंजरों का सामना करना पड़ता है. ऐसे जब कोई सहृदय इंसान क़दम-कदम पर उनका धन्यवाद अदा करे तो धरती माता के मुस्कुराने की वजह बनती है. यही मुस्कुराना है धरती माता का आशीर्वाद.

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