ऋतुराज
पुष्प सुसज्जित पूर्ण यौवना बाग
वन वन टेसू खिले लगाए आग।
इतराती प्रकृति सोलह श्रृंगार कर
मोहित हो प्रेम रस बरसाए अंबर।
पुष्प पुष्प पर डोले प्यासे मधुकर
प्रेम गीत गाए मोहित हो भ्रमर।
ले उड़े सुगंध चुराकर शीतल बयार
भर उर असीम अथाह प्यार भंडार।
इत उत डोले तितलियां इतरा कर
आह्लादित आज परागकण चुराकर।
गुलाब डहलिया मुख पर है मुस्कान
ऋतुराज का पाकर प्रेम आलिंगन।
प्रेमातुर मोर लुभाए मोरनी नृत्य कर
घन रस बरसाए अप्रतिम दृश्य देखकर।
प्रकृति अभिसारिका आतुर पिया मिलन
कर सोलह श्रृंगार प्रतीक्षित है तन मन।
चहुं ओर प्रेमासक्त हुआ वातावरण
धरा पर जब हुआ ऋतुराज आगमन।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।