ग़ज़ल – तपती दुपहरी
तपती दुपहरी है, उसपे बेरहम तन्हाई है,
दिल को बहलाने तुम्हारी याद चली आई है ।
तुम नहीं, लेकिन तुम्हारा एहसास मेरे पास है
बेवजह ही आंख मेरी किसलिए भर आई है ?
गर्म हवाओं ने भी ना जाने क्या जादू किया कि,
हुआ यूं महसूस जैसे वही खुशबू तुम्हारी आई है ।
मन बड़ा चंचल है , बेकल है, बहुत उदास है ,
हर समय की ये बेखूदी मेरी जान पर बन आई है ।
तपती दुपहरी है उसपे बेरहम तन्हाई है।
दिल को बहलाने तुम्हारी याद चली आई है।।
— साधना सिंह