भरोसा भाग 1
“नहीं, नहीं, नहीं क्षितिज अब और यह सब मुझसे नहीं होगा। अपने आप पर बहुत जुर्म कर लिया मैंने। तुम्हारी बातें मैंने बहुत मान ली। तुम्हारी बातें मानते मानते, मैंने अपने अंतर्मन को ही मार दिया। तुम अपनी इच्छा मुझ पर थोपते गए और मैं समर्पित होकर सब पूर्ण करती गई। मुझसे मेरा निर्णय लेने का अधिकार भी तुम ने छीन लिया। तुमने यह जानने का कभी प्रयास भी नहीं किया कि मेरी भी कोई इच्छा है, कोई खुशी है, एक आकाश है, जहां मैं स्वयं अपनी इच्छा से उड़ सकूं, विचरण कर सकूं। अपने मन के विरुद्ध जाकर मैंने, अपनी आत्मा को बहुत छलनी कर ली। मेरी आत्मा रो रो कर यह कह रही है कि “बस ईशा और नहीं..।” अब मैं अपने मन के विरुद्ध नहीं जा सकती। अब मैं वही करूंगी जो मेरा मन चाहेगा। दिमाग का दरवाजा अब मैंने बंद कर दिया है।”.. ईशा के दो नैनों से अश्रु धार ऐसे बह निकली जैसे बारिश में कोई नदी उफनती है। उफनती नदी को कोई बांधने का प्रयत्न करें तो बांधी नहीं जा सकती, उसी तरह आंसू रोकने का प्रयत्न कर के भी आंसुओं को ईशा रोक नहीं पा रही थी। वह क्षितिज के सामने रोकर अपने आप को कमजोर साबित करना नहीं चाहती थी। पर.. ह्रदय वेदना पिघल कर नैनों के रास्ते बाहर आने के लिए बेताब थी।
“मेरी बातें नहीं मान सकती तो इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह भी नहीं होगी, यह तुम अच्छी तरह से समझ लो।”.. क्षितिज की बातों में रूखापन था।
“तुम्हारा.. तुम्हारा यह घर मेरा मन बहुत पहले छोड़ चुका है। और तन भी यह घर छोड़ देता, अगर मुझे अनु की चिंता नहीं होती। मैं पहले सोचती थी कि यह घर छोड़ दूंगी तो अनु की जिंदगी बर्बाद हो सकती है। पर.. नहीं, अब अगर मैं इस घर में एक पल भी ठहरी तो अनु की जिंदगी जरूर बर्बाद हो जाएगी, जैसे मेरी हुई है। अनु की परवरिश मैं ऐसे माहौल में कतई नहीं करना चाहती। उसे एक अच्छी जिंदगी देना चाहती हूं। अच्छी शिक्षा देना चाहती हूं ताकि सावलंबी बनकर अपना निर्णय स्वयं ले सके। स्वेच्छा से खुले आकाश में विचरण कर सके, खुशी से अपनी जिंदगी अपनी तरह से जी सकें।”.. ईशा ने अपनी आंखों के आंसू पोंछते हुए, कठोरता से अपना निर्णय सुना दिया। और.. जाने की तैयारी करने के लिए अपने कमरे की ओर बढ़ गई..!
…..
ऐसे कठिन समय में ईशा की सहेली वर्षा ने उसका बहुत साथ दिया। एक अच्छी कॉलोनी में छोटा सा फ्लैट किराए पर लेकर अपनी बेटी अनु के साथ रहने लगी ईशा। अनु छः वर्ष की हो गई थी। एक अच्छा स्कूल देखकर ईशा ने अनु का एडमिशन पहली कक्षा में करवा दी। वर्षा की मदद से ईशा को उस फाइनेंस कंपनी में अकाउंटेंट की नौकरी मिल गई थी, जिस कंपनी में वर्षा एरिया मैनेजर के पद पर पदस्थ थी। ईशा के पास कंपनी में कार्य करने का अनुभव था इसलिए उसे नौकरी मिलने में बहुत अधिक परेशानी नहीं आई।
नई नई नौकरी थी, इशा थोड़ा झिझक रही थी क्योंकि इतने साल घर में ही रही। वर्षा ने ईशा का परिचय सबसे करा दिया था। मैनेजर ने आकर ईशा को सारा काम समझा दिया था। मैनेजर के जाने के बाद ईशा फाइलस लेकर बैठ गई। अपना काम समझने का प्रयास कर रही थी। फाइलस देखकर ईशा के मन ने अतीत के दरवाजे पर दस्तक दिया तो दरवाजा खुल गया। और कुछ यादों की किरणें मानस पटल पर ऐसे बिखर गई जैसे किसी सिनेमा के पटल पर किरणें बिखरा दी जाती है और चित्र उभर कर सामने आते हैं..
“एमबीए करने के पश्चात एक प्राइवेट कंपनी में उसकी जॉब लगी थी। कस्टमर को डील करना उस का मुख्य काम था, कंपनी अकाउंट को भी उसे संभालना होता था। एक बार ऐसे ही एक कस्टमर से उसकी मुलाकात हुई जो किसी एक नई कंपनी का मालिक था। अपनी कंपनी की प्रगति करने के लिए संघर्ष कर रहा था। निशा को देखकर वह काफी प्रभावित हुआ था तो कोई ना कोई काम का बहाना बनाकर अक्सर आ जाया करता था। एक दिन बातों बातों में ईशा से कहा..”आपका नाम तो मुझे पता है, आप ईशा है। पर..ये नहीं पता कि आप इसी शहर की है या किसी अन्य शहर की है।”
“क्यों, इसका काम से कोई ताल्लुकात तो है ही नहीं। मैं चाहे किसी भी शहर से हूं, इससे आपके काम में कोई परेशानी तो नहीं आती होगी?”..ईशा ने बेबाकी से कहा।
“नहीं, नहीं, मैं इसलिए पूछ रहा था, मैं जानना चाहता हूं कि आप इसी शहर की रहने वाली है क्या? पर डर रहा था।”
“इसमें डरने वाली क्या बात है। आप सीधे ही पूछ सकते हैं, आप कहां की रहने वाली हैं?”
“मुझे लगा आप बुरा मान जाएंगी”
“बुरा मानने वाली कोई बात ही नहीं है। वैसे भी आप बहुत दिनों से यहां आ रहे हैं, मुझे जानते हैं! मैं भी आपका नाम जानती हूं आप मिस्टर क्षितिज चोपड़ा है और चोपड़ा एंड संस कंपनी के मालिक है। मैंने सही कहा ना?”
“बिल्कुल, बिल्कुल, आप गलत कह ही नहीं सकती। बहुत होशियार है आप और बहुत खूबसूरत भी।”
खूबसूरत शब्द सुनकर निशा को थोड़ा अटपटा सा लगा और अच्छा भी लगा। खूबसूरत शब्द सुनकर किसी लड़की के होठों पर मुस्कान और कपोलों पर लालिमा छा जाने का गुण प्राकृतिक ही होता है। निशा के गालों पर भी भोर की लालीमा जैसी रक्तिम आभा स्पष्ट नजर आ रही थी। वह शरमा गई और मन ही मन सोचने लगी कि..” इतनी सी जान पहचान में मेरी इतनी तारीफ क्यों कर रहा है? कहीं मतलब निकालने का कोई नापाक इरादा तो नहीं है इसके मन में? नहीं, नहीं, ऐसा दिखता तो नहीं है वह। अच्छी पर्सनालिटी है, हैंडसम है, और बातों से तो लगता है बहुत ही सुलझा हुआ है। फिर भी मुझे इसके मन को पढ़ना पड़ेगा।” उसने हंसते हुए कहा..” अच्छा, ऐसा क्या? यह तो मुझे नहीं पता कि मैं इतनी खूबसूरत हूं ।”
“केवल खूबसूरत नहीं, आप बहुत खूबसूरत हैं। आज जाकर आईने में देखना अपने आप को, पता चल जाएगा।”.. क्षितिज के होठों पर प्यारी सी मुस्कान थी।
ईशा एकदम शर्मा गई और उसने नजरें झुका ली और कहा..” तारीफ करना तो कोई आपसे सीखे, बात बात में ऐसी तारीफ कर दी कि सामने वाले को कुछ पता ही नहीं चल पाया कि तारीफ के शब्द कब निकल गए।”
“तारीफ क्या, मैं तो सच ही कह रहा हूं। और फिर तारीफ ना करूं तो क्या आपकी बुराई करूं कि आप बहुत बदसूरत है।”.. क्षितिश के होठों पर शरारत भरी मुस्कान थी, यह मुस्कान बता रही थी कि वह दिल दे चुका है ईशा को।
ईशा ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा..” समय हो चुका है जाने का, आपका काम खत्म हो गया तो मुझे इजाजत दीजिए घर जाने का।”
“श्योर,श्योर, आपको बिलकुल इजाजत है! बाय सी यू टुमाॅरो!”.. कहकर क्षितिज ने अपना बैग उठाया और चल दिया।
क्षितिज का व्यक्तित्व आकर्षक था, जो कि ईशा को आकर्षित तो किया था पर, किसी को अच्छे से जाने बिना उसने कदम बढ़ाना उचित नहीं समझा।
घर पहुंचकर मां पिताजी के साथ रात का खाना खाया! तत्पश्चात काम के विषय में थोड़ी बहुत बातें हुई। निशा के मन में कुछ तो उलझन था तो वह आराम करना चाहती थी इसीलिए मां पिताजी से कहा..” अच्छा, अब मैं थोड़ा आराम करती हूं, मम्मा, पापा थक गई हूं! दिनभर कस्टमर से बात करते-करते थकान हो जाती है।”
“अच्छा, बेटा जा आराम कर ले, दिनभर की थकी हुई है! बातें तो छुट्टी के दिन भी कर सकते हैं। अच्छा, गुड नाइट!”
“गुड नाइट मम्मा, पापा कल सुबह मिलते हैं!”
फिर सुबह ऑफिस पहुंचकर वही फाइल्स, वही कस्टमर्स। पूरा दिन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता। अचानक किसी ने आकर कहा.” गुड इवनिंग!” तो उसने नजर उठा कर देखा सामने क्षितिज खड़ा था। शाम के करीब छः, साढ़े छः बज रहे थे तब।
“गुड इवनिंग! कब आए आप, मुझे तो पता ही नहीं चला। दिनभर फाइलों में उलझी रहती हूं।”
“सामने वाले की कोई अहमियत, आपकी नजर में हो तब तो आपको पता चलेगा। मैं बहुत पहले ही आया हूं। मैनेजर से कुछ काम था, कंप्लीट करके ही आ रहा हूं।”.. क्षितिज ने थोड़ा सा नाराजगी का नाटक करते हुए कहा।
“अरे, अहमियत कैसे नहीं है। आप जैसे लोगों के कारण ही तो कंपनी चलती है, और आप जैसे लोगों को खुश रखना ही तो हमारा काम है।”.. निशा ने भी थोड़ा सा चुटकी लेते हुए कहा।
“हम जैसे लोगों को खुश रखना आपका काम है, तो मेरी खुशी के लिए एक काम करना पड़ेगा आपको।”.. क्षितिज भी कहां पीछे रहने वाला था।
“हां, हां, बताइए! काम पूरा करने का वादा रहा। काम पूरा करके ही घर जाऊंगी आज। बताइए क्या काम है?”.. इशा ने फौरन कह दिया।
“वादा किया आपको पूरा करना पड़ेगा”
“आप काम तो बताइए”
“काम यह है कि आज आपको मेरे साथ डिनर करना पड़ेगा, मंजूर है?”
“यह काम कंपनी के काम के दायरे में तो नहीं आता!”
“हां.. आपने सही कहा, परंतु आप वादा कर चुके हैं मुझसे! वादा तोड़ देंगीं क्या?”
ईशा मन ही मन सोचने लगी कि..” यह किस झंझट में पड़ गई मैं, बिना सोचे समझे वादा कर दिया। ईशा के मन में आया कि वह ना कर दे पर.. उसे क्षितिज का साथ अच्छा लग रहा था। वादा निभाना तो एक बहाना था। असल में कुछ क्षण वह क्षितिज के साथ रहकर उसे जानना चाह रही थी।”
“क्या हो गया? कोई जवाब नहीं मिल रहा है मुझे।”.. ईशा को चुप देखकर क्षितिज ने दोबारा पूछा।
“हां हां जब वादा कर दिया तो निभाना ही पड़ेगा। मैं जरा अपनी फाइलें समेट लूं फिर चलती हूं!”…ईशा अपनी फाइलें समेट कर उठ खड़ी हुई और कहा”.. चलिए, पर जाएंगे कैसे? आपकी कार से या मेरी कार से?”
“किसी के कार से नहीं, रेस्टोरेंट यहां से नजदीक ही है। हम पैदल चल कर जाएंगे, बातें करते करते।”.. क्षितिज ने जवाब दिया।
दोनों ऑफिस से बाहर निकले और चल पड़े रेस्टोरेंट की ओर…!!
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।