गज़ल
आँखों में धुआँ है, सीने में उबाल भी
चलन है जुदा-जुदा बदली है चाल भी
कुछ तो मैं फितरत से ही हूँ थोड़ा आलसी
कुछ छोड़ता नहीं मुझे उनका ख्याल भी
खुद तो बातचीत की करते नहीं पहल
उस पे सितम हम कर नहीं सकते सवाल भी
उड़ने की तमन्ना तो अब भी है मेरे दिल में
पर क्या करूँ लगने लगा है प्यारा जाल भी
जिनकी तमन्ना में सुबह से शाम होती है
फुर्सत नहीं उनको वो पूछें मेरा हाल भी
— भरत मल्होत्रा